‘‘आजाद हिन्द फौज’’ के सुप्रीम कमांडर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में जो अप्रत्याशित संघर्ष द्वितीय महायुद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया की रणभूमि में प्रारम्भ हुआ था, उसमें गढ़वाली सैनिकों को देशभक्ति पूर्ण वीरत्व गाथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अविस्मरणीय घटना रहेगी।
ऐतिहासिक मूल्यांकन की दृष्टि से राष्ट्र पिता महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस दोनों महारथियों ने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी संघर्षशील भूमिका सर्वोŸाम ढ़ंग से सम्पन्न की और यह महत्वपूर्ण कार्य उस समय केवल वे ही कर सकते थे। गांधी जी ने भारत के अंदर और नेेताजी ने भारत के बाहर ब्रिटिश सम्राज्य के आधारभूत ढांचे को प्रायः तहस-नहस कर दिया। भारत-छोड़ो आंदोलन एवं आजाद हिंद फौज आन्दोलन ने भारतीय जनता को पूर्णतः संघर्षशीलन बनाने हेतु प्रेरित किया।
यह बात सभी जानते हैं कि आजाद हिन्द फौज अलग से नहीं बनाई गई थी। अंग्रेजों की जिन फौजों को जर्मन व जापान ने गिरफ्तार कर जेलों में रखा था उन्हीं फौजों के सैनिकों से आजाद हिन्द फौज का गठन हुआ। जर्मन द्वारा गिरफ्तार सैनिकों की यूरोप में संख्या कम थी लेकिन वे बड़े साहसी थे। नेताजी द्वारा जो सेना गठित की गई थी, उसमें मात्र पांच हजार युद्ध बंदी सैनिक थे। उनमें 600 से अधिक गढ़वाली थे। सिंगापुर में जो फौज बनाई गई थी उसमें 40 हजार से अधिक सैनिक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कमान में थे। इन सैनिकों में 2500 गढ़वाली थे। उनमें लगभग 550 सैनिक जनपद चमोली के थे जो गढ़वाली सैनिक सिंगापुर के मोर्चे पर अंग्रेजी सेना के विरुद्ध लड़ रहे थे, उनमें से लगभग 600 सैनिक वहीं शहीद हो गये।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली तथा गढ़वाली सैनिकों को बड़ा सम्मान देते थे। नेताजी ने कहा कि – ‘‘मुझे जर्मन, मलाया और सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज के गठन की जो प्रेरणा प्राप्त हुई वह मात्र वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली एवं अन्य बहादुर गढ़वाली सैनिकों के अदम्य साहस एवं हिम्मत का परिणाम है। इसमें संदेह नहीं है कि इस कार्य की सफलता में मैंने वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली एवं उनके साथी पेशावर-काण्ड के बहादुर सैनिकों को अपना गुरू माना है। पेशावर, की जनता उन्हें खुदा समझ कर मानती है।’’
आ. हि. फौ. के कमांडर-इन-चीफ आ. हि. फौ. की सैनिक सरकार के प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जब अपने घर कलकŸाा में नजरबंद थे, तब वे एक दिन 40 पुलिस-सिपाहियों के कड़े पहरे से अचानक गायब हो गये और 21 जनवरी 1941 को काबुल पहुंचने में सफल रहे। इसके बाद युद्ध की मशीनगनों, तोपों व हवाई हमलों के गोलों के मध्य गुजरते हुए 28,मार्च, 1941 को बर्लिन पहुंच गये। नेताजी जर्मनी के तानाशाह एडौल्फ हिटलर से मिले। हिटलर उनसे बहुत प्रभावित हुये और उन्होंने जर्मन द्वारा युद्ध बंदी बनाये गये भारतीय सैनिकों को नेताजी के सुपुर्द कर दिया।
जापान ने मित्र राष्ट्रों के लगभग एक लाख सैनिकों को बर्मा, सिंगापुर, फिलीपीन्स में युद्ध बंदी बना दिया था। क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस ने उन युद्धबंदियों की सेना बना दी थी, लेकिन उनके पूर्ण नियन्त्रण हेतु जर्मनी से नेताजी को जापान बुलाया गया। नेताजी 6 मई 1943 को जापान और नौ जुलाई सिंगापुर आये। उनका ओजस्वी भाषण सुनकर 40 हजार युद्धबन्दी आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गये। उन्होंने मित्र-राष्ट्रों की सेना से खूब युद्धकर उनके छक्के छुड़ा दिये।
उपरोक्त सेना में 5000 गढ़वाली सैनिक व ऑफिसर थे। उनके ऊंचे एवं विश्वसनीय पदों पर नियुक्त होने एवं साहसपूर्ण कारनामों के कारण उस फौज में गढ़वाल के जवानों का स्थान बहुत ऊंचा था।
सन् 1946 के प्रारम्भ में जब गढ़वाली आजाद हिन्द फौज के जवान अंग्रेजी सरकार की कैद से मुक्त होकर अपने-अपने घरों को वापिस लौटे, तब गढ़वाल की जनता ने बड़े प्रेम एवं उत्साह के साथ उनका अभिन्दन व सम्मान किया। उन्हीं दिनों राष्ट्रनायक जवाहर लाल नेहरू ने आम चुनाव के सिलसिले में गढ़वाल का भ्रमण किया। उन्हें नेहरू अभिनन्दन कोष के रूप में जो तीन हजार रुपये से भी अधिक की थैलियां भेंट की गई थी, वह पूरी धनराशि आजाद हिन्द फौज के सैनिकों के सहायतार्थ खर्च की गई।
जिन अनेक गढ़वाली बहादुर एवं प्रमुख ऑफिसरों ने आजाद हिन्द फौज में नेताजी के निजी स्टाफ में सेवारत रहकर उनका विश्वास प्राप्त कर महत्वपूर्ण कार्य किया था, उनमें ले. कर्नल पितृ शरण रतूड़ी, ले. कर्नल बुद्धि सिंह रावत, मेजर पदमसिंह गुसांई, मेजर देवसिंह दानू, मेजर महेन्द्र सिंह बगड़ी, ले. कर्नल चन्द्रसिंह नेगी, कैप्टिन जयवीर सिंह रावत, से. ले. ज्ञानसिंह बिष्ट, रायसिंह भंडारी, सोबन सिंह रौतेला, ले. खुशालसिंह रावत आदि प्रमुख व बहुचर्चित थे।
आजाद हिन्द फौज के अनेक प्रमुख सैनानियों ने देश के आजाद होने पर देश की राजनीति में भाग लिया। शासन व प्रशासन के अच्दे पदों पर नियुक्त किये गये। कर्नल पितृशरण रतूड़ी प्रारम्भ में होमगार्ड्स के कमांडर बने व बाद में उन्हें पुलिस सेवा में लिया गया। प्रोन्नत होकर पुलिस महानिरीक्षक तथा गृहमंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के पद पर सेवारत रहे। सेवानिवृŸा होने के बाद अन्तिम समय तक गृह-मन्त्रालय में
स्वाधीनता-सेनानी विभाग के अवैतनिक-परामर्शदाता के रूप में कार्यरत रहे। कर्नल बुद्धिसिंह रावत भी पुलिस अधीक्षक व बाद को पी.ए.सी. में कमांडेंट के पद पर कार्यरत रहते हुये सेवा-निवृŸा हुये।
आजाद हिन्द फौज के जीवित सेनानी नेताजी को स्मरण करते हुये आज भी बताया जाता है कि भावुक हो जाते हैं। नरेन्द्रनगर क्षेत्र के रामपुर निवासी आजाद हिन्द फौज के सेनानी स्व. सोबन ंिसह रौतेला प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय-ध्वजारोहण के समय पर आजाद हिन्द फौज का लोकप्रिय गीत भी ‘कदम कदम बढ़ाये जा खुशी के गीत गाए जा’ गाकर उत्साह एवं स्फूर्ति का वातावरण पैदा कर देते थे। यह प्रायः निश्चित है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सुयोग्य संचालनकत्व में स्वाधीनता की लड़ाई लड़ने के कारण गढ़वाली सैनिकों में अदम्य साहस, देशप्रेम तथा कर्त्तव्यपरायणता के गुणों का पर्याप्त विकास हुआ है। उन्होंने देश के जिस किसी क्षेत्र में जिस किसी पद पर कार्य किया है, उसके फलस्वरूप गढ़वाल का गौरव बढ़ा है और यह इतिहास की एक चिरस्मरणीय निधि है।