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Monday, June 5, 2023
लेख उत्तराखण्ड के विकास में पत्रों एवं पत्रकारों की भूमिका

उत्तराखण्ड के विकास में पत्रों एवं पत्रकारों की भूमिका

वर्तमान युग में समाचार-पत्र तथा पत्रकार समाज के प्रमुख अंग माने जाते हैं। यूरोपीय विद्वत-समाज में फ्रांसीसी राज्य क्रान्ति के बाद सत्ता के तीन स्तम्भ माने थे, जिसमें विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका सम्मिलित थे। तत्पश्चात पत्रकारिता एवं समाचार पत्रों को लोकमत जागृत करने का एक सशक्त माध्यम मानकर राज्य सत्ता का चौथा-स्तम्भ (फोर्थ स्टेट) माना जाने लगा तथा समाचार-पत्रों तथा पत्रकारिता पेशे से जुड़े समुदाय का सम्मान बढ़ गया। लोकतंत्र में लोकमत एवं सामाजिक चेतना के वाहक के रूप में समाचार पत्रों का महत्व प्रायः सभी स्वीकार करते हैं।

स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व उत्तरांचल में स्वतंत्रता- आंदोलन के अलावा जिन प्रमुख समस्याओं को लेकर क्षेत्रीय जनता ने आंदोलन चलाया और जनता को जागरूक किया उनमें 1. कुली-बर्दायश प्रथा विरोधी आन्दोलन, 2. श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर सुधार आंदोलन, 3. गढ़वाल मोटर-सड़क निर्माण आंदोलन, 3. हरिजन डोला-पालकी आंदोलन तथा 5. टिहरी राज्य जन क्रान्ति आंदोलन आदि प्रमुख थे। इन जनांदोलन के प्रचार-प्रसार एवं समर्थन में उत्तरांचल के समाचार पत्रों तथा पत्रकारों ने समय-समय पर जो महत्वपूर्ण भूमिका प्रदर्शित की वह निःसंदेह प्रभावशाली, सराहनीय एवं उत्साहवर्द्धक प्रतीत हुई।

सरकार के विभिन्न विभागों, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं एवं संगठनों के क्रियाकलापों, प्रगति एवं विकास की गतिविधियों के समाचार पत्रकार अपने पत्रों के  माध्यम से आये दिन समय-समय पर प्रकाशित करते रहते हैं। प्रतिवर्ष जिलों में तथा अन्य प्रमुख स्थानों में सरकारी एवं गैर सरकारी रूप में तथा शासन के मंत्रियों एवं शीर्षस्थ अधिकारियों द्वारा समय-समय पर पत्रकार- सम्मेलन एवं पत्रकार-गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं और उनमें विकास कार्यक्रमों की प्रगति की समीक्षा की जाती है। इन सम्मेलनों एवं गोष्ठियों में पत्रकारों के अलावा जन प्रतिनिधियों की भी प्रमुख भागीदारी रहतीहै। पत्रकारों के द्वारा जब अपने-अपने क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों की प्रगति के मूल्यांकन के समाचार विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित होते हैं तो उससे शासन-प्रशासन के उत्तरदायी प्रतिनिधियों का ध्यान अवश्य आकर्षित होता है और वे पत्रकारों एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा उठायी गई समस्याओं के निराकरण हेतु आवश्यक कार्यवाही अमल में लाते हैं। इस कार्यवाही पर शासन द्वारा मान्यता प्रदान करना न्याय संगत माना जाता है।

आज पत्रों एवं पत्रकारों का दायित्व पहले से कई गुना बढ़ गया है। देश तथा प्रदेश में पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास रहा है। स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान अनेक साहसी पत्रकारों ने निर्भीकता के साथ अपने पत्रों अथवा पत्रकारिता के माध्यम से देश व प्रदेशवासियों में राजनैतिक क्रान्ति की ज्वाला प्रज्ज्वलित की। इस राष्ट्रीय आंदोलन में हमारी उत्तरांचल के पत्रकारों का भी पर्याप्त महत्वपूर्ण चिरस्मरणीय योगदान रहा है जो कि उत्साहवर्द्धक प्रतीत हुआ। उत्तरांचल के विकास, जन जागरण, क्षेत्रीय समस्याओं को उजागर करने तथा उनके विकास को नई दिशा प्रदान करने एवं मार्गदर्शन हेतु उत्तरांचल के पत्रकारों एवं समाचार-पत्रों ने लोकमत जगाने का महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया होता तो विगत अनेक वर्षों से संचालित पृथक उत्तराखण्ड राज्य का वर्तमान आंदोलन एवं जन-जागरण कार्यक्रम इतना सशक्त एवं सफल नहीं हो पाता।

हमारे उत्तरांचल के विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन एवं जन-जागरण में जितनी महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली भूमिका पत्रों व पत्रकारों की रही है, उतनी सम्भवतः किसी अन्य माध्यम की नहीं रही है। अतः हमारे पत्रों एवं पत्रकार बन्धुओं का पुनीत कर्त्तव्य एवं दायित्व हो जाता है कि वे सम्पूर्ण मनोयोग एवं सेवा-भावना से प्रदेश के इस पिछड़े एवं विकासोन्मुखी पर्वतीय क्षेत्र के चतुर्मुखी विकास के लिए, जो हितकर एवं श्रेयकर प्रतीत होवे, साहस एवं आत्मविश्वास के साथ अपनी सशक्त लेखन उठावें।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पर्वतीय क्षेत्र के पत्रों व पत्रकारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। पत्रकारों एवं पत्र-सम्पादकों को अपने कार्य-सम्पादन में अनेक आर्थिक कठिनाइयों तथा असुविधाओं का सामना करना पड़ता है और यह सत्य भी है कि आज किसी भी स्तर पर उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पाती हैं। शासन-प्रशासन को इस दिशा में उनके हित की दृष्टि से समय-समय पर पर्याप्त ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता है। उत्तरांचल में भी पत्रों एवं पत्रकारों के पत्रकारिता, साहित्यिक एवं सामाजिक उत्थान तथा जन-जागरण के कार्यक्रम उत्साहवर्द्धक रहे हैं। उत्तरांचल ने जहां इस ओर लब्ध प्रतिष्ठित संत, कवि एवं राष्ट्रीय राजनीतिज्ञ प्रदान किये हैं, वहीं दूसरी ओर इसने प्रतिष्ठित पत्रकारों को भी जन्म दिया है, जिन्हें देश, विदेश, प्रदेश तथा पर्वतीय क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुकूल अपनी सशक्त लेखनी के द्वारा पत्रकारिता जगत की अपरिमित एवं चिरस्मरणीय सेवा की है और अभी तक यथासम्भव सेवा करते आ रहे हैं।

श्री राधाकृष्ण वैष्णव
श्री राधाकृष्ण वैष्णव, नन्दप्रयाग | स्वतंत्रता संग्राम पत्रकार | सात दशकीय पत्रकारिता/साहित्य लेखन

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