आर्यावर्त (भारतवर्ष) उत्सव प्रधान देश है। प्रत्येक वर्ष में छ: ऋतुओं में ऋतु परिवर्तन के अवसर पर विभिन्न उत्सव जैसे वसंतोत्सव, शरदोत्सव, ग्रीष्मोत्सव आदि आदि तो मनाये ही जाते हैं इसके अतिरिक्त भी प्रत्येक मास के प्रत्येक पक्ष में कदाचित सप्ताह में भी बारहों महीने कोई ना कोई उत्सव अवश्य मनाया जाता है और इसे उत्सव प्रिय होने के कारण अपने अवतरण के लिए भगवान ने भारतवर्ष की भूमि को चुना। श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान के अवतार वेदव्यास जी ने स्वयं कहा है कि जिस देश अथवा भूमि में भगवान की कथा का अमृत प्रवाह नहीं होता, जिस देश में सन्यास धर्म और साधुता का पालन नहीं होता, जहां भगवान के प्रति समर्पण नहीं है, जहां यज्ञ, जप, तप, पूजा तथा भगवान के जन्मोत्सव आदि नहीं मनाये जाते ऐसा देश अथवा क्षेत्र यदि इंद्र के द्वारा भी शासित क्यों न हो तथापि वह मुझे कदापि प्रिय नहीं है।
“न यत्र वैकुण्ठ कथाः सुधापगाः
न साधवो भागवतास्तदाश्र या:।
न यत्र यज्ञेश मखाः महोत्सवाः
सुरेश लोकोपि न वै स सेव्यताम्।।
अर्थात जहां उपर्युक्त समस्त प्रकार के उत्सव मनाए जाते हो वह देश अथवा राष्ट्र भगवान को अत्यंत प्रिय है। सौभाग्य से यह सब हमारे देश में सहज रूप से होता है। शारदीय नवरात्र से तो विभिन्न उत्सवों की बाढ़ सी आ जाती है। पहले नवरात्रि,फिर दशहरा, फिर शरद पूर्णिमा उसके पश्चात दीपावली पर्व, फिर छठ पर्व फिर प्रबोधिनी एकादशी (जिसको देवउठनी एकादशी भी कहते हैं क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन से जागते हैं), और अब कार्तिक पूर्णिमा जो देव दीपावली के नाम से भी प्रसिद्ध है। क्योंकि इस मास को भगवान कार्तिकेय के नाम से ही जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल की छठी तिथि को ही भगवान कार्तिकेय का अवतरण हुआ था (इसीलिए इसे कार्तिकेय छठ के नाम से भी मनाया जाता है जो बिहार में छठ पूजा त्योहार के रूप में अत्यंत प्रसिद्ध है)। कार्तिकेय के अवतरण होने के कारण इस महीने को उनके नाम से “कार्तिक” के रूप में जाना जाता है और पूर्णिमा भी कार्तिक पूर्णिमा के नाम से सुप्रसिद्ध है। कार्तिक महीने को दामोदर मास के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसी महीने दधि मंथन की लीला में भगवान श्री कृष्ण को यशोदा मां ने रस्सी से उनके पेट को बांधा था (दाम अर्थात रस्सी उदर अर्थात पेट अस्तु पेट में रस्सी बांधी गई थी भगवान श्री कृष्ण की)। इसी उत्सव की श्रंखला में आज “कार्तिक पूर्णिमा” का पुण्य पर्व है। कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान श्री कृष्ण ने जमुना जी में “दीपदान” के त्यौहार का सूत्रपात किया था इसलिए इसे देव दीपावली के नाम से भी मनाया जाता है। (वृंदावन में तो संपूर्ण कार्तिक मास में आज भी जमुना जी में दे दान किया जाता है)। कार्तिक पूर्णिमा की दिवस तुलसी पूजन भगवान विष्णु का पूजन एवं गंगा अथवा जमुना आदि पवित्र नदी का स्नान तथा भगवान सत्यनारायण की व्रत कथा पूजा आदि अत्यंत पुणे प्रद होता है। आयुर्वेद के अनुसार जिस प्रकार से शरद पूर्णिमा के प्रकाश में पोषित खीर व्यक्ति को वलिष्ठ बनाती है उसी प्रकार से कार्तिक माह की पूर्णिमा में लगभग 12 वर्ष की आयु तक के बालकों को मक्खन खिलाना चाहिए जिससे वह संपूर्ण वर्ष भर निरोग रह सकें।अस्तु सभी धर्मावलंबी 30 नवंबर 2020 को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर नदी स्थान, सत्यनारायण व्रत कथा एवं तुलसी पूजन तथा भगवान श्री नारायण का भजन पूजन अवश्य करें तथा भगवान की महती कृपा प्राप्त करें। आप सभी को कार्तिक पूर्णिमा की अनंत मंगल कामनाएं।