गंभीरता, विवेकशक्ति का प्रतीक ग्रह बुध, देवगुरु बृहस्पति की धर्मपत्नी तारादेवी का पुत्र है। चन्द्र व तारा के संयोग के फलस्वरूप जारज रूप में बुध की उत्पत्ति हुई। अतः चन्द्र, बुध का जनक है। वैवस्वत मनु के दस पुत्रों के बीच एक मात्र कन्या ‘इला’ बुध की भार्या है और पुरुरवा बुध का एक मात्र पुत्र है।
बुध के अवतरण के समय ब्रह्मचक्र तीव्र त्वरित गति से गतिशील था। तृतीय राशि मिथुन उदित क्षितिज में दृश्य थी। लग्न में उच्च का राहु, तन के एक पाप अपवित्रता को स्पष्ट प्रकट कर रहा था। धन भाव पर गुरु चन्द्र का सम्मिलन था जिस पर सूर्यदेव अष्टम भाव से मकरस्थ होकर पूर्ण दृष्टि डाल रहे थे। गुरु, बुध के समस्त दुःखों, रोगों का निवारक और चन्द्र बुध की अनन्त आयु का कारक बना। शनि भाग्य भाव में स्वगृही होकर पापत्व को प्रकट करते हुए समस्त अरिष्टों का निवारक बना। केतु धनु राशि में सप्तमस्थ होकर बुध के दाम्पत्य जीवन का नाशक रहा। इसी ने बुध को क्लीवता प्रदान की है तभी बुध तटस्थ लिंगी माना जाता है। शुक्र राज्यभाव में उच्च का होकर राज्य व सुख को स्थायित्व दे रहा था। सूर्य व शुक्र की महती कृपा से बुध समस्त बाधाओं को विजित करता है।
बुध को ब्रह्माण्ड के नियन्ता सूर्य का पूरा संरक्षण प्राप्त है। यह सूर्य देव से 280 से अधिक दूरी में किसी भी स्थिति में भूलकर भी नहीं जाता, यही कारण है कि आप लोगों को बुध आकाश में सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक तथा सूर्योदय के लगभग डेढ़ घंटे पहले तक कहीं कठिनाई से दिखाई दे सकता है।
बुधग्रह अपनी धुरी पर लगभग 24 घंटों में एक चक्कर पूरा कर लेता है। 30 मील प्रति सेकेंड की गति से लगभग 88 दिनों में ही अपनी परिक्रमा पथ को पूरा कर लेता है। जितने क्षेत्र को सूर्य एक माह में पूरा करता है, बुध उसे लगभग 25 दिन में पूरा कर लेता है। बुध पृथ्वी से 1369 लाख मील दूर है। यह आकृति में सबसे छोटा ग्रह है और अत्यधिक तीव्र गतिशील है।
भचक्र में बुध को 2 स्थान (क्षेत्र) प्राप्त हैं। पहला भचक्र के 600 से 900 तक दूरा 1500 से 1800 तक। प्रथम क्षेत्र मिथुन है जो वायु या शीततत्व क्रूर, पश्चिम, शूद्र, हरितवन, शीर्षोदयी, द्विपद, पुरुष प्रतीक है। दूसरा क्षेत्र कन्या है जो पृथ्वी तत्व, सौम्य, दक्षिण, वैश्य जाति, पांडुरंगी, शीर्षोदयी, द्विपदी, स्त्री प्रतीक है। बुध ग्रह का मूल त्रिकोण कन्या राशि के 900 है। स्वगृह मिथुन व कन्या है। स्वराशि कन्या पर भी उच्चस्थ, बुध की तीव्र बुद्धि का प्रतीक है। नीच स्थान मीन राशि है।
बुध को कई नामों का सम्बोधन मिला है, यथा- ज्ञ, सौम्य, बोधन, चान्द्रि, हेम्न, रोहिणेय, उतारुढ़, इसका प्रभाव कालपुरुष के दोनों हाथों, कंधे, छाती के ऊपर का भाग, गला, फेफड़ा, वाणी, नासिका, कमर, पेट, अंतड़ियों व जठर अंग पर होता है। बुध के नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा व रेवती हैं। क, छ, प, ठ वर्णों से प्रारम्भ होने वाले नाम के जातक बुध को सर्वदा प्रिय लगते हैं। बुध के भाग्योदय वर्ष 32 हैं। यह 5 की संख्या पर पूर्ण प्रभावी होता है। अतः 5, 14, 23 तारीखों पर बुध का प्रभाव है। विंशोत्तरी दशा चक्र में बुध को 17 वर्ष मिले हैं। दीप्तांश 7 व कलांश 13 हैं। बुध उत्तर दिशा का स्वामी है। सप्ताह में मध्य दिवस बुधवार इसे मिला है। बुध का सूर्य संरक्षक, शुक्र मित्र, राहु अपना ही है। चन्द्र को शत्रु मानता है। इसकी कटाक्ष दृष्टि है और अपनी स्थिति से सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है।