‘प्रत्यक्षं देवता सूर्यो जगच्चक्षुः दिवाकरः।’
सूर्य-ब्रह्माण्ड गोलक का अधिपति है। पृथ्वी का सौरमण्डल सूर्य द्वारा ही संचालित व नियंत्रित है। जितने भी ग्रह, नक्षत्र, योग, राशियां, करण, आदित्यगण, वसवगण, रुद्र, अश्विनी कुमार, वायु, अग्नि, शक्र प्रजापति, समस्त भूः भुवः स्वः आदि लोक सम्पूर्ण नग, नाग, नदियां, समुद्र और समस्त भूतों का समुदाय है। इन सभी के हेतु दिवाकर ही हैं।
सूर्य भगवान अजन्मा हैं, फिर भी एक जिज्ञासा अन्तस्थल को प्रेरित करती रहती है कि सूर्य का जन्म कहां हुआ ? कैसे हुआ ? और किसके द्वारा हुआ ? पुराणों, शास्त्रों द्वारा ज्ञात होता है कि भगवान सूर्य महर्षि कश्यप और दक्ष प्रजापति की पुत्री अदिति के गर्भ से अवतरित हुए इसीलिए सूर्य का नाम आदित्य भी है।
भगवान सूर्य का अवतरण भाद्रपद मास, कृष्णपक्ष, सप्तमी तिथि, रविवार को प्रातःकाल सिंह लग्न में हुआ। जन्म के समय की कुण्डली-
लग्न में सू0 स्वगृही विराजमान हैं। धनभाव में स्वगृही बुध मूल त्रिकोणी होकर उच्चस्थ हैं जो दीर्घायु प्रदान कर रहा है। पराक्रम में स्वगृही शुक्र सौभाग्य का उद्बोधन कर रहा है। पंचम भाव में बृहस्पति स्वगृही किंतु केतु भी साथ में पाप संतान का द्योतक है। षष्ट भाव में स्वगृही शनि दीर्घातितीर्घायुकारक होकर व्यय संयित करके पराक्रम बढ़ाकर सुखभाव को बल प्रदान कर रहा है। नवम् भाग्य भाव में स्वगृही मंगल व्यय को संतुलित करके, पराक्रम बढ़ाकर सुखभाव को बल दे रहा है। पराक्रम को भाग्य से पुष्ट कर रहा है। दशम् राज्यभाव में चंद्र उच्चस्थ है जो सुख-वृद्धि का कारक बना है। भाग्य पर बृहस्पति का पवित्र प्रभाव है। आय पर भी बृहस्पति प्रभावी है। तनुभाव को बृहस्पति पूर्ण दृष्टि द्वारा पवित्रतम बनाकर प्रभाव वृद्धि का कारक है।
सूर्य का स्वक्षेत्र 5वें नम्बर की राशि सिंह है। 1200 से 1500 तक इसका क्षेत्र है। सूर्य-पुरुष स्वरूप, मूल संज्ञक, क्रूर, अग्नि तत्व, क्षत्रिय जाति, विषम, पित्त प्रकृति, वनचारी और शीर्षोदयी है। चंद्र, मंगल, बृहस्पति सूर्य के मित्र हैं। शुक्र व शनि शत्रु हैं। यह लाभ का कारक है। कृतिका, उत्तराषाढा, उत्तरा फाल्गुनि सूर्य के नक्षत्र हैं। विंशोत्तरी महादशा में 6 वर्ष का समय सूर्य को मिला है।
सूर्य स्थिर होकर भी स्वयं गतिमान है। यह हाईड्रोजन गैस से निर्मित व प्रकाशित है। सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना अधिक बड़ा है। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर पहुंचने में लगभग सवा 8 मिनट लगते हैं। भचक्र परिप्रमण में सूर्य को 365 दिन 6 घंटा 9 मिनट लगते हैं। सूर्य एक वर्ष में 12 राशियां भोग देता है अर्थात एक राशि पर 1 माह। यह मंगल की राशि मेष पर उच्च का, शुक्र की राशि तुला पर नीच का कहा जाता है। सूर्य 22 से 24 वर्ष की आयु में अपना पूर्ण प्रभाव प्रकट करता है।
शनि-सूर्य का पुत्र है किन्तु एकदम प्रतिरोधी है। एक मूलांक पर सूर्य प्रभावी रहता है। यह ग्रीष्म ऋतु का कारक है। मकर राशि से 6 राशि तक उत्तरायण में चेष्ठावली रहता है।
भगवान सूर्य के 108 नाम हैं- सूर्योऽर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क सविता रविः, भानु, भाष्कर, मार्तण्ड, आदित्य, दिवाकर, अर्क, हेलि आदि। वेद माता गायत्री का सूर्य ही अधिष्ठाता देव है।
भुवन भास्कर भगवान श्री सूर्यनारायण प्रत्यक्ष देवता हैं, प्रकाश स्वरूप हैं। वेद, इतिहास एवं पुराण आदि में इनका अतीव रोचक व सारगर्भित वर्णन मिलता है। सूर्य ही आदि ब्रह्म है।
जीवन के लिए जिस आक्सीजन तत्व की अनिवार्य आवश्यकता है वह तत्व सूर्यभगवान ही निरंतर ब्रह्माण्ड को प्रदान करते रहते हैं।
।। ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ।।