माना कि जीवन जटिल रहस्यों की गुत्थी है, कभी कठिन तो कभी सरल, लेकिन कल्पना मात्र के लिए इसे दूर नहीं किया जा सकता। इसके लिए क्या अब किसी भी युवा में परित्याग करने की हिम्मत नहीं रह गयी हैै जो कि वह निरन्तर नशे की गिरफ़्त में समाती जा रही है। आज जिस तरह से युवा वर्ग अपने शरीर को गिल्लियों की भांति उखाड़ने पर लगा है वह क्या एक आंशिक तुष्टिता नहीं बल्कि उतनी ही गहरी अंधकार में धंसी जड़ों के समान है जो उनके दिलो दिमाग पर घर कर गई है। किसी शुभ अवसर पर चाहे वह जन्मदिन की पार्टी हो या शादी-विवाह, यह तक कि यदि किसी कार्य को सहानुभूति के रूप में करना अनिवार्य है तो उसमें भी मद्यपान का लालच देना अहम हो गया है। आज इस नाचीज की अहमियत इस कदर बढ़ चुकी है कि वह इन्सान की कीमत को भी टटोल सकती है और इन्सान/युवा वर्ग उसे पाने की चाह में अपना आपा खोने लगा है। उसे अब अपने ही प्राकृतिक एवं दैविय शक्ति के रूप में मिले पंच भौतिक तत्व शरीर पर विश्वास नहीं रह गया है। अब वह नशे से चलने वाली मात्र एक मशीन बन गया है।
कटु सत्य यह है कि अगर इसी तरह युवा वर्ग पर नशे की लत हावी होती रही तो हमारा आने वाला भविष्य मजधार में ही लटक जायेगा। क्यांेकि युवाशक्ति ही समाज व देश की रीढ़ की हड्डी के समान होती है, इसे देश का स्वर्णिम आशान्वित वर्ग माना जाता है, अर्थात समाज व देश के भविष्य का दारोमदार इन्हीं के मजबूत कधों पर निर्भर होता है। अतः समाज व देश के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिये युवाओं में निरंतर बढ़ती नशे की लत पर अंकुश लगाना ही होगा और इसके लिए ज़रुरी है कि माता-पिता बच्चों को अधिक से अधिक समय और संस्कार प्रदान कर एक अच्छा नागरिक बनाए, तभी वे स्वयं व राष्ट्र को समृद्धशाली बना पायेंगे।