आजादी के बाद भारत में राजनैतिक दलों, क्षेत्रीय दलों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं तथा सामाजिक संगठनों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। लेकिन गुलामी के दिनों में देश के कोने-कोने में राष्ट्रीय विचार धारा का प्रवाह था, गली-कूचों में भी देश प्रेम की बयार एवं सामाजिक पुनर्जागरण की स्वर लहरियां गीत गाया करती थी और तब के नेताओं में देश भक्ति अधिक तथा राजनीतिक लाभ की लालसा ना के बराबर थी। लोक चरित्रवान नेताओं का अनुसरण कर कदम से कदम मिलाकर लाखों पदचापों की छाप छोड़ जाते थे।
1947 के बाद से ही अपनी गणतंत्रात्मक संसदीय प्रणाली की मजबूत नीवों पर सरकारें तथा देश के विकास के लिये पंचर्वीष योजनाओं की सतत् गतिमान व कीर्तिमान आधार शिलाओं पर विकास के ऊंचे-ऊंचे भवनों का प्रदर्शन तथा निर्माण जारी है। हम विश्व में अग्रणी बन चुके हैं। राष्ट्र कुल में हमें विकसित राष्ट्र की श्रेणी में गिना जा रहा है। देश का हर नागरिक अपने को गौरवान्वित समझता है क्योंकि हम अब विश्व की महान शक्तियों में सुमार उस शक्ति के सूत्रधारों में खड़े हो चुके हैं जिसे आणुविक (परमाणु) शक्ति वाला देश कहा जाता है। हमारा देश विश्व को शान्ति व समृद्धि का संदेश देता है। परमाणु हथियारों के बल पर किसी को डराता धमकाता नहीं है। फिर भी हम कुंठित हैं- क्यों? उत्तर है हमारे नेतृत्व करने वाले लोगों का जन आकलन, उनका राजनैतिक, सामाजिक तथा नैतिक चरित्र जिसमें सबसे अधिक राजनैतिक स्वार्थ की दुर्गन्ध अधिक तथा देशभक्ति की सुगन्ध दिखावे मात्र तक रह गई है। इसी वजह से हमारे यहां नेताओं की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन उनके प्रति आम जनता के मन में सम्मान के भाव में काफी गिरावट आ गई है। भले ही लोग नेताओं की भय व स्वार्थ परक नीतियों के कारण उनके सामने कोई विरोध नहीं कर पाते हों परन्तु पीठ पीछे उनके दागदार चरित्र पर गालियां बक कर अपनी खीज तो अवश्य उतार ही ले ही लेते हैं।
इसलिए अत्यंत आवश्यक है कि समस्त राजनीतिक दल सुयोग्य नेताओं को अपना प्रत्याशी बनाएं और आमजनमानस क्षेत्रवाद, जातिवाद व दलगत भावना से ऊपर उठ कर सही जनप्रतिनिधियों को ही चुन कर विधानसभा और लोकसभा भेजें, तभी संसदीय-मंदिरों को राजनैतिक कुपोषण व अवमूल्यन से बचाया जा सकेगा।