जब भी देश व राज्यों में चुनाव का समय आता है तब-तब सभी के मन-मस्तिष्क में एक ही विचार कौंधता है, क्या इस बार राजनीतिक पार्टियाँ स्वच्छ छवी के नेताओं को पार्टी का टिकट देंगी? लेकिन अफसोस भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधी-करण के चलते वर्तमान राजनीति अपने पवित्र उद्देश्यों से भटकर अपराध के मकड़जाल में फंस चुकी है। भौतिकवाद के इस युग में राजनीति का आधार त्याग व बलिदान न होकर लूट-खसोट और स्वार्थ हो गया है। परिणामस्वरुप आज सम्पूर्ण देश अपराध व भ्रष्टाचार से ग्रसित है। अगर समय रहते समस्त राजनीतिक दलों ने इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
तेजी से बदलते इस दौर में राजनीतिज्ञों के मन में जन सेवा की भावना कम, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की प्रवृत्ति ने भ्रष्टाचार को चरम सीमा पर पहुंचा दिया है। देश का कोई ऐसा राज्य नजर नहीं आता जहां भ्रष्टाचार का बोलबाला न हो। भौतिकवादिता की चकाचैंध में राजनीतिज्ञ ही नही अपितु प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थों को ही सर्वोपरि मानकर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपराध और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। जहां तक राजनीति के अपराधीकरण की बात है तो राजनीति में अपराधियों के प्रवेश के लिए सभी प्रमुख राजनैतिक दल समान रूप से जिम्मेदार हैं। गंभीर और विचारणीय प्रश्न यह है हिस्ट्रीशीटर व दस्युओं को जिताकर यह दल समाज को क्या देना चाहते हैं?
कटु सत्य यह भी है कि राजनीति के क्षेत्र में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के बढ़ते दबदबे ने समाज के बुद्धिजीवियों को राजनीति से विमुख कर दिया है। जिसे किसी भी कीमत पर सही नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि राजनीति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को अपराधिक व्यक्तियों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। अतः ऐसे कठिन दौर में समाज के समस्त जागरूक नागरिकों, बुद्धिजीवियों एवं जिम्मेदार संस्थाओं का फर्ज बनता है कि वे समाज में अन्याय और भ्रष्टाचार से लड़ने का जज्बा पैदा करें। वहीं सत्तासीन सरकारों को भी चाहिए कि इस दिशा में ठोस कदम उठाये। समस्त राजनीतिक दलों को यह स्मरण रखना होगा कि अगर एक बार जनता का विश्वास उन पर से उठ गया तो सभी को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।