उत्तराखण्ड में जहाँ आजकल मानसून ने मार्गों की हालत खराब करके रखी हुई है तो वहीं दूसरी ओर यहाँ के अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य ने पर्यटकों को मंत्र-मुग्ध करके रखा हुआ है। अर्थात यदि हम पूर्ण ईमानदारी व निष्ठा से यहाँ पर्यटन की संस्कृति को विकसित करें तो यह हमारे आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभा सकता है। क्योंकि पर्यटन सिर्फ मनोरंजन या मनबहलाव का साधन नहीं, यह दो संस्कृतियों, दो सभ्यताओं के मध्य सेतु का कार्य करता है। पर्यटन सांस्कृतिक दूत की भूमिका तो निभाता ही है, साथ ही किसी भी प्रदेश अथवा देश की अर्थ व्यवस्था में भी महती योगदान देता है। पर्यटन व्यवसाय के कारण ही विश्व के अधिक से अधिक समुदाय, समाज तथा व्यक्ति विशेष एक-दूसरे से सीधे सम्पर्क में आते हैं। यदि विकसित देश अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में विकासशील देशों की सहायता करें तो इन असमानताओं को कम कर पूरे विश्व को प्रजातंत्र, शान्ति और सद्भावपूर्ण जीवन यापन के लिये सुरक्षित बनाया जा सकता है। इससे इक्कीसवीं शताब्दी में नई वैश्विक सभ्यता का सूत्रपात हो सकेगा। भारत के संदर्भ में पर्यटन की बात करें तो जर्मन विदान मैक्समूलर की एक उक्ति याद आती है, अगर मुझसे पूछा जाय कि इस आसमान के नीचे मानव ने कहां पर अपने सबसे खूबसूरत उपहार को पूरी तरह संवारा है, तो मैं भारत वर्ष की ओर इशारा करूंगा। ‘यही है भारत की वैभव पूर्ण विरासत! पुराणों में कहा भी गया है- यदि हास्ति तदन्यत्र! यननेहास्ति न कुत्राचित।’ अर्थात जो यहां (भारत में) नहीं है, वह कहीं भी नहीं है।
इस समृद्धि का सबसे बड़ा कारण यह है कि हमने विकास की अवधारणा को अपनाया, प्राचीन काल से ही इस मान्यता पर चलते रहे- ‘हे मातृभूमि मैं आपको इतना कष्ट न पहुंचाऊ कि जिसकी भरपाई न हो सके।’ पर्यटन के क्षेत्र में विश्व में संतुलित, दायित्वपूर्ण और सतत् विकास के लिये भारत को सभी ओर से सम्मान मिला है। यदि हम आर्थिक दृष्टि से मूल्यांकन करे तो हमने अपनी नई पर्यटन नीति के तहत स्वदेशी पर्यटन, ग्रामीण पर्यटन पर बल दिया है, जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास में तो मदद मिलेगी ही, साथ ही स्थानीय लोगों को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। विशेषकर उत्तराखण्ड राज्य का अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य तो पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करने की क्षमता रखता है। इसलिये केन्द्र व राज्य सरकार को यहां पर्यटन के क्षेत्र में वृहत स्तर पर कार्य करना चाहिये। इससे जहां हमारी संस्कृति संपूर्ण विश्व में विशिष्ट पहचान प्राप्त करेगी तो वहीं यहां के युवाओं को रोजगार के भरपूर अवसर व राज्य को आर्थिक लाभ होगा।
सबसे पहले तो हम आपको शैलवाणी पोर्टल आरंभ करने के लिए बधाई देना चाहते हैं। इस वेबसाइट से पूरे विश्व में उत्तराखंड से सामाजिक ,आर्थिक,सांस्कृतिक रूप से जुड़े उत्तराखंडियों को अपनी जड़ों से जुड़ने में बहुत सहायता मिलेगी।
पर्यटन किसी भी देश, राज्य के लिए आर्थिकी का सशक्त माध्यम है लेकिन इससे क्षेत्र की संस्कृति को खतरा भी उत्पन्न होने की संभावना भी रहती है ऐसा कई स्थानों पर हुआ है। इससे सचेत रहने की आवश्यकता है। चूंकि पर्यटन आर्थिकी से जुड़ा विषय है अतः धन के लोभी व्यवसायी के आपराधिक गतिविधियों के पोषक भी बन जाते हैं।इसकी और भी ध्यान देने की आवश्यकता है।