कभी-कभी ऐसी आकस्मिक घटनायें घट जाती हैं जो व्यक्ति को मृत्यु के कगार तक पहुंचा देती है। ऐसे समय में तत्काल आवश्यक उपचार की आवश्यकता पड़ती है, जिससे वह व्यक्ति मृत्यु के मुख से निकलकर स्थायी उपचार के योग्य बन सके। यहां नीचे इसी प्रकार की आकस्मिक चिकित्सा का वर्णन दिया जा रहा है। आशा है ‘शैलवाणी’ के विद्वान पाठक अवश्यक मेरे इस लेख से कुछ आकस्मिक चिकित्सा का ज्ञानार्जन कर लाभान्वित होंगे।
- पानी में डूबना– पानी में डूब जाना एक सामान्य दुर्घटना है। पानी में डूबा व्यक्ति बचने के लिये हाथ-पैर मारता है तथा पानी में छटपटाता रहता है। जिससे उसके नाक एवं मुंह द्वारा पेट में पानी भर जाता है। जिससे उसका श्वास रुक जाता है, तथा बेहोशी आ जाने के कारण मृत्यु हो जाती है।
प्राथमिक उपचार–
1. डूबे हुये व्यक्ति को सुरक्षित ढंग से पानी से बाहर निकालने का प्रयास करना चाहिये। यदि नाक में कीचड़ लगा हो तो कपड़े से साफ कर देना चाहिये। दांतों के बीच में कोई कड़ी-वस्तु फंसा दें ताकि दांत पर दांत बैठकर मुंह बन्द न हो जाए। रोगी को पेट के बल लिटाकर उसके कमर से नीचे दोनों हाथ डालकर बार-बार उठायें इससे फेफड़ों में जमा पानी बाहर निकल जाता है। डूबे व्यक्ति को पेट के बल अपने सिर पर रखकर एक ही स्थान पर गोलाई में घुमाने से पेट में गया पानी निकल जाता है।
देखकर यह सुनिश्चित कर लें कि रोगी का श्वास ठीक चल रहा है कि नहीं, नाड़ी की गति भी देखनी आवश्यक होती है। हृदय धड़क रहा है कि नहीं यह भी देखना चाहिये। यदि श्वास रुक-रुक कर चल रहा हो तो कोई सूंघनी सुंघानी चाहिये ताकि छींक आ जाये। ऐसे में चूने में नौसादर मिलाकर सुंघा सकते हैं। छींक आने से श्वास की गति ठीक हो जायेगी। सीने को बार-बार दबायें एवं छोड़ें। पेट के बल उलटा लिटाकर पेट के नीचे गोल तकिया रख दें। पीठ को लगातार दबायें एवं छोड़ें। इससे फेफड़ों की हवा बाहर निकल जायेगी। छोड़ने पर हवा भीतर आ जायेगी। यदि इसमें भी पूरी तरह काम न चले तो रोगी के मुंह पर मुंह लगातार कृत्रिम श्वास देकर श्वास चलाने का प्रयास करें। पानी में डूबे हुये व्यक्ति का यह उपचार तभी सार्थक होता है जबकि डूबे व्यक्ति को बाहर निकालने पर उसका शरीर गर्म हो और उसके हाथ-पांव शिथिल न पड़ गये हों। सफलता के चिन्ह दिखाई पड़ने पर रोगी को शीघ्रातिशीघ्र निकट के चिकित्सालय में पहुंचाना चाहिये, ताकि रोगी के प्राणों की रक्षा की जा सके।
- आग से जलना– प्रायः लोग चूल्हा, स्टोव या गैस जलाते समय आग की चपेट में आ जाते हैं। असावधानी के कारण कपड़ों को आग पकड़ लेती है। कोई-कोई आत्महत्या का प्रयास करते हैं। कभी-कभी मकान आदि जल जाने पर लोग आग की चपेट में आ जाते हैं। यह एक संकटकालीन अवस्था होती है। जले व्यक्ति की प्राण रक्षा करने के लिये प्राथमिक उपचार की जानकारी अच्छी तरह से होनी चाहिये।
- आग की लपेट में आ जाने पर दौड़ना भागना नहीं चाहिये। आग से सुरक्षित स्थान पर लेटकर इधर-उधर लुढ़कना चाहिये। इससे आग जल्दी बुझ जाती है। जलते हुये कपड़ों को बड़ी सावधानी से ब्लेड या चाकू से काटकर अलग कर देना चाहिये।
- जलते हुये व्यक्ति पर मिट्टी, कम्बल आदि डालकर आग बुझाने का प्रयास करना चाहिये। जलते हुये व्यक्ति को कम्बल से इस प्रकार ढक दें कि हवा बन्द हो जाए। इससे आग बुझ जायेगी। कम्बल आदि डालने पर घाव की गहराई बढ़ जाती है और त्वचा काफी अन्दर तक झुलस जाती है। पानी डालकर आग बुझाने से फफोले पड़ जाते हैं, परन्तु घाव गहरे नहीं होते हैं। जो साधन उपलब्ध हो उनसे शीघ्र ही आग बुझानी चाहिये।
- जले हुये स्थान पर नारियल का तेल लगाना चाहिये। यह उपचार गरम घी एवं तेल पड़ने से फफोले पड़ गये हों तो, पर्याप्त होता है।
- यदि शरीर का अधिक हिस्सा जल गया हो तो रोगी को अविलम्ब चिकित्सालय में ले जाना चाहिये। शरीर का अधिक भाग जलने पर रोगी को बैचेनी कम होती है।
- जले हुये स्थान को हल्के-हल्के रुई से साफ करके नारियल या जैतून का तेल लगाना चाहिये। जलने के बाद संक्रमण से बचने के लिये जीवाणुनाशक घोल- जैसे सोडावाईकार्न के घोल से धोना उचित है। मल्हम लगाने से घाव देर में भरते हैं। खुले घाव पर रुई चिपक जाती है। चिपकने पर उसे छुड़ाने की चेष्ठा न करें क्योंकि ऐसा करने पर घाव बढ़ जायेगा।
- घाव को सदैव ढककर रखें, ताकि उस पर मक्खी-मच्छर के बैठने से किसी प्रकार का संक्रमण न हो।
- फफोलों को फोड़ना नहीं चाहिये इन पर नारियल का तेल या मक्खन लगायें। भूलकर भी मिट्टी का तेल या स्प्रिट न लगायें।
- यदि छोटा बच्चा गलती से आग में झुलस जाये तो जले हुये हिस्से को तब तक पानी में डुबोये रखें जब तक उसकी जलन शान्त न हो जाए। असली शहद का लेप करने पर भी जलन शान्त होती है।
- रोगी को मुलायम आरामदायक बिस्तर पर लिटाना चाहिये तथा पर्याप्त मात्रा में जल पिलाते रहें। रोगी को पौष्टिक आहार दें तथा उसे मानसिक सांत्वना देते रहें इससे वह जल्दी ठीक हो जायेगा। शरीर में जल का संतुलन बनाये रखने के लिये ड्रिप द्वारा ग्लूकोज चढ़ाने की आवश्यकता भी पड़ सकती है। इसके लिये चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिये।
- सिर पर आघात लगना– सिर पर आघात संघातिक होता है। प्रायः दुर्घटना आदि में या लड़ाई-झगड़े में सिर पर चोट लग जाती है। सिर पर लाठी, डंडा, घूंसा आदि के आघात से बेहोशी आ जाती है। चोट लगने से मस्तिष्क का कार्य अस्त- व्यस्त हो जाता है।
उपचार–
1. रोगी को पूर्ण विश्राम देना चाहिये।
2. बेहोशी की अवस्था में मुंह पर पानी के छींटे देकर होश में लाने का प्रयास करना चाहिये।
- चोट को धोकर प्राथमिक उपचार में हल्की पट्टी बांधनी चाहिये।
- एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी पिसी हुई मिलाकर पिलानी चाहिये। इससे दर्द में कमी होगी।
- गम्भीर अवस्था में अविलम्ब अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिये। एक्स-रे करके हड्डी के टूटने का पता चलने पर तत् संबंधी उपचार करना आवश्यक होता है। आंतरिक रक्तचाप को रोकने तथा भीतर रक्त के थक्के न जमने देने लिये डाॅक्टर इंजक्सन तुरन्त देते हैं।
- आंख, कान, नाक आदि में किसी वस्तु का घुसना- अक्सर हमारे नाक, कान, आंख, गले आदि में जब किसी अवांछित वस्तु का प्रवेश हो जाता है तो हम परेशान हो जाते हैं। अगर इस प्रकार की स्थिति आ जाए तो निम्नलिखित उपायों पर विचार करना चाहिये।
कान में किसी वस्तु का प्रवेश- अगर कान में कोई कीड़ा-मकोड़ा प्रवेश कर गया हो तो- 1. कान में टार्च की रोशनी करें। कीड़ा-मकोड़ा रोशनी से आकृष्ट होकर बाहर निकल जायेगा। 2. कान में 2-3 बूंद गुनगुना जल ड्राप से डालें। 3. कान में ग्लीसिरीन, सरसों या जैतून का तेल या स्प्रिट की कुछ बूंदे डालें।
यदि यह उपाय कारगर न हों, कोई वस्तु फंस गई हो तो 1. वस्तु को निकालने का प्रयास करें। 2. यदि वस्तु फिर भी न निकले तो चिकित्सक को दिखायें। हाइड्रोजनपराक्साइड आदि कान के अन्दर न डालें इससे कान के पर्दे को हानि पहुंचती है।
आंख में किसी वस्तु का प्रवेश–
1. आंख में किसी वस्तु के पड़ जाने पर आंख जोर से न मलें। पलक को ऊपर उठाकर रुमाल के कोने से या रूई की बत्ती से या ब्लाटिंग पेपर के टुकड़े से निकालें।
2. ऊपरी पलक को थोड़ा ऊपर उठाकर नीचे की पलक का बाल साहित ऊपरी पलक के नीचे कर धीरे-धीरे हाथ से मलें।
3. आंख पर पानी की धार या पानी का छींटा डालें।
4. आंख में एक-दो बूंद गुलाब जल या जैतून का तेल डाले।
5. यदि आंख में चूना पड़ गया हो तो पानी का छींटा दें या सिरके का घोल डालें।
नाक में किसी वस्तु का प्रवेश–
- नाक के जिस छिद्र में वस्तु अटकी हो उसके बगल वाले छिद्र को बन्द करके झटके से श्वास बाहर की ओर निकालें, ताकि भीतर के हवा के दवाब से वस्तु बाहर निकल आये।
- नौसादर या तम्बाकू सुंघाकर छींक लाने का प्रयास करें।
3.सख्ती से फंसी वस्तु को छोटी चिमटी से निकालने का प्रयास करें।
गले में किसी वस्तु का फंसना-
- सिर आगे की ओर झुकाकर गर्दन पर पीछे की ओर थपकी दें।
- मुंह को खोलकर अपनी दोनों अंगुलियों से वस्तु को निकालने का प्रयास करें।
- यदि खाद्य पदार्थ का छोटा टुकड़ा अटक गया हो तो मुंह में रोटी या केला या खीर आदि खिलायें इससे अटकी वस्तु पेट में चली जायेगी। तब भी यदि अटकी वस्तु न निकले तो रोगी को चिकित्सालय ले जावें।
- शीशा निगलना– प्रायः बच्चों को कोई वस्तु मुँह में डालने की आदत होती है। मुंह में डालने पर कभी-कभी अचानक वह वस्तु पेट के अन्दर जली जाती है। निगली हुई यह कांच के टुकड़े के रूप में लोहे की नुकीली कील या ऐसी ही कोई हानिकारक वस्तु हो सकती है। कभी-कभी कांच का पिसा चूरा खा लेने की घटना हो जाती है। कांच पेट में जाकर आमाशय तथा आंत की दीवारों को काट देता है जिससे गम्भीर स्थिति पैदा हो जाती है।
चिकित्सा–
1. शीशा आदि नुकीली वस्तु या शीशे का चूरा निगल जाने की स्थिति में बे्रड के बीच में मक्खन एवं रूई की तह बिछाकर खिला दें। यह रूई पेट में जाकर शीशे के टुकड़ों के चारों ओर लिपट जायेगी। जिससे आंतों के कटने का डर कम हो जायेगा।
2. रोगी को पका केला, खिचड़ी, दलिया, साबूदाना, आलू आदि अधिक से अधिक खिलायें।
3. घी हल्का गरम करके पिलायें। जुलाब आदि देकर यह हर सम्भव प्रयास करें जिससे उल्टी या दस्त हो जाए।
- चोट, रक्तचाप एवं हड्डी का टूटना- हमारे शरीर में रक्त संचालन करने वाली नसों का जाल सा बिछा हुआ है। ये नसें तीन प्रकार की होती है-
1. धमनी,
2. शिरा,
3. महीन कोशिकायें।धमनी का कार्य सम्पूर्ण शरीर को शुद्ध रक्त की आपूर्ति करना तथा शिरा का कार्य शरीर से दूषित रक्त एकत्र करके हृदय में वापस शुद्ध होने हेतु भेजना है। कोशिकायें बारीक धागे जैसी होती हैं। ये शिरा एवं धमनी से संबंधित होती हैं एवं त्वचा तक फैली होती है। चोट लग जाने पर धमनी का रक्त शरीर से बाहर उछल-उछलकर निकलता है। इसका रंग सुर्ख चमकीला लाल होता है। शिरा का रक्त गहरे रंग का होता है और समान गति से बाहर निकलता है। कोशिकाओं का रक्त नन्हीं-नन्हीं बूूंदों के रूप में धीरे-धीरे बाहर निकलता है।
- दुर्घटना में चोट लगने पर यदि धमनी का रक्त निकल रहा हो तो घायल अंग को ऊपर करके रखना चाहिये। यदि शिरा से रक्त प्रवाह हो रहा हो तो उस अंग को नीचे करके रखें इससे रक्तचाप जल्दी बंद हो जायेगा।
- घाव को शीतल जल से धोकर उस पर बर्फ रखें और ठंडे पानी में भीगे कपड़े की पट्टी बांधे। इससे भी रक्तचाप जल्दी बंद हो जाता है।
- चोट के समीप ऊपर की ओर दबाकर रखने पर रक्तचाप बन्द हो जाता है।
- सामान्य कोशिकाओं से रक्तचाप हो रहा हो तो अंगुली से कुछ देर तक दबाकर रखें और डेटाॅल या जीवाणुनाशक घाल से साफ करके उस पर फिटकरी रख कर हल्की पट्टी बांध दें। सामान्य चोट पर फिटकरी का पाउडर छिड़ककर पट्टी बांध देने से रक्तचाप रूक जाता है।
- यदि नाक से रक्तचाप हो रहा हो तो स्वच्छ हवादार स्थान पर रोगी को बिठा दें। सिर को पीछे की ओर लटकाकर रखें। हाथों को ऊपर की ओर कर दें। नाक एवं गर्दन पर बर्फ का ठंडा पानी रखें। मुंह को खुला रखकर श्वास लें और पैरों को गर्म पानी में रख दें। इससे नाक का रक्तचाप शीघ्र रुक जायेगा।
अक्सर दुर्घटना में बड़ी चोट लग जाने पर रक्तचाप होने के साथ ही कभी-कभी हड्डी भी टूट जाया करती है। टूटी हड्डी के संदर्भ में कोशिश यह करनी चाहिये कि बिना छेड़-छाड़ किये रोगी को यथाशीघ्र चिकित्सालय पहुँचायें। हिलने-डुलने से अधिक हानि पहुंच सकती है। कभी-कभी टूटी हड्डी माँस को फाड़कर बाहर निकल जाती है। ऐसी स्थिति में अत्यंत सावधानी रखने की जरूरत पड़ती है। टूटी हड्डी की पहचान यह है कि टूटे स्थान में दर्द होता है वह अंग टेड़ा, लम्बा या छोटा हो सकता है।
हड्डी टूटने की स्थिति में प्राथमिक उपचार इस प्रकार करना चाहिये-
- यदि जांघ, पैर या हाथ की हड्डी टूटी हो तो बिना हिलाये-डुलाये टूटे अंग पर स्केल या लकड़ी की खपच्ची दोनों ओर रखकर बांध दें और नजदीकी चिकित्सालय में रोगी को ले जायें। यदि रक्तचाप हो तो उसे रोकने का प्रयास करें।
- हड्डी का सिरा टूटकर बाहर निकल गया हो तो ऐसी स्थिति में बिना हिलाये-डुलाए रखें और चिकित्सक को बुलायें।
3. सिर की हड्डी टूट गई हो तो सिर ऊंचा करके लिटा दें। घाव को पोंछ कर हल्की पट्टी बांध दें। सीने एवं गर्दन के वस्त्र ढीले कर दें। उसे शांत एवं गर्म रखने का प्रयास करें तथा रोगी को सांत्वना दें।
4. यदि रीढ़ या कमर की हड्डी टूटी हो तो रोगी को लेटा ही रहने दें। तुरन्त चिकित्सक को बुलावें नहीं तो गम्भीर हानि पहुंच सकती है।
विषाक्तता– कभी-कभी जाने आनजाने में विषपान कर लेने से जीवन खतरे में पड़ जाता है। दैनिक जीवन में कई ऐसी घटनाएं हो जाती हैं कि कोई ना कोई व्यक्ति विषपान करने के कारण जीवन एवं मृत्यु से संघर्ष करने लगता है। ऐसी स्थिति में तत्काल चिकित्सा न करने पर विष सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता है। यदि विष रक्त में मिलकर हृदय तक पहुंच जाये तो मृत्यु हो जाती है।
विभिन्न प्रकार के विषों जैसे सांप एवं बिच्छू दंश, कीटनाशक औषधियों का भक्षण, मिट्टी का तेल, तारपीन का तेल, अफीम, धतूरा एवं कुलचा, गांजा, भांग, शराब आदि ऐसे हैं कि इनका तत्काल
प्राथमिक उपचार निम्न प्रकार से करना चाहिये-
- अधिक मात्रा में नमक का घोल पिलाकर उल्टी करवायें। अगर उल्टी न हो तो साबुन का पानी पिलाएं और मुंह के अंदर गले में दो उंगलियां डालकर उल्टी करायें। अधिक मात्रा में घी पिलाने पर भी उल्टी दस्त हो सकते हैं। जिससे विष बाहर निकल जायेगा तथा उसका प्रभाव कम होगा।
- अरण्डी का तेल या जैतून का तेल या मैगसल्फ पिलाकर रोगी को दस्त कराने का प्रयास करें। मिट्टी का तेल, तारपीन का तेल या पेट्रोल आदि पीने पर उल्टी न कराकर विरेचन (दस्त) करवाने चाहिये।
- यदि रोगी होश में हो तो उसे आश्वासन देना चाहिये कि वह शीघ्र ही ठीक हो जायेगा। इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है।
- यदि रोगी श्वास लेने में कठिनाई महसूस करता हो तो उसे ऑक्सीजन दें।
- यदि रोगी को नींद आ रही हो तो उसे सोने से रोकना चाहिये, क्योंकि नींद में जहर तेजी से फैलता है।
विष- उसकी पहचान तथा प्राथमिक उपचार-
1.संखिया- संखिया एक अत्यंत घातक विष है। इसे शुद्ध करके इससे औषधि भी बनती है। अगर कोई इसे अशुद्ध रूप में खा ले तो विषम स्थिति पैदा हो जाती है।
संखिया विष के लक्षण-
- गले में खराश तथा जलन की अनुभूति।
- अधिक कमजोरी के साथ बेहोशी।
- सिर तथा पेट में दर्द, उल्टी, मुंह का सूखना, बेचैनी, दस्त लगना, त्वचा का ठंडी होना, कंपकपी।
- नाड़ी की गति का धीमी होना।
- रोगी की मृत्यु 4 से 48 घंटे के बीच हो जाती है।
प्राथमिक उपचार-
- वमन कराने के लिये एक लीटर पानी में 4-5 चम्मच नमक मिलाकर पिलायें।
- अरण्डी का तेल पिलाएं जिससे दस्त के जरिये विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जायें।
- शीतल हवादार कमरे में रोगी को रखें, हाथ-पैर गर्म रखें, शरीर में ऐंठन हो तो सरसों के तेल की मालिश करें।
धतूरा- यह एक सर्वत्र पाया जाने वाला पौधा है। इसके बीज एवं पत्तियां विषाक्त होती हैं। इससे भी औषधि बनती है। धतूरे के बीज खा लेने पर शरीर पर उसका विष प्रभाव पड़ने लगता है।
धतूरा विष के लक्षण-
1. उल्टी होने लगती है।
2. नाड़ी कमजोर होने लगती है।
3. गला एवं मुंह सूखने लगता है। पेट में जलन, सिर में चक्क्र तथा पैर लड़खड़ाने लगते हैं।
4. नींद आने लगती है, रोगी प्रलाप करने लगता है।
5. बिस्तर से उठकर भागने की चेष्टा करता है।
6. कपड़ों से उसके धागे निकालने का भ्रामक प्रयास करता है।
7. बोलने में असमर्थता, चेहरा एवं नेत्र लाल हो जाते हैं।
प्राथमिक उपचार-
1. रोगी के सिर में ठंडा पानी डालें।
2. नमक का घोल पिलाकर उल्टी कराकर विषाक्त पदार्थ बाहर निकाले।
3. अरण्डी का तेल या मैगसल्फ पिलाकर दस्त करवायें।
4. श्वास लेने में यदि कठिनाई आ रही हो तो ऑक्सीजन दें। क्लोरोफॉर्म सुंघाने पर रोगी का प्रलाप बंद हो जाता है। मुंह पर ठंडा पानी मारने पर आराम मिलता है।
5. गर्म दूध पीने को दें।
अफीम-अफीम एक घातक मादक द्रव्य है। इसे नशे के रूप में कुछ लोग सेवन करते हैं। इससे ही मार्फीन भी बनती है जिसका प्रभाव अत्यन्त घातक होता है। इसकी सामान्य मात्रा से अधिक मात्रा शरीर में चले जाने पर जीवन संकट में पड़ जाता है।
लक्षण-
1. तेज जम्हाई आती है।
2. आंख की पुतली छोटी पड़ जाती है।
3. शरीर में पसीना, श्वास में अफीम की बदबू आती है। श्वास धीरे-धीरे तथा गहरा चलता है।
4. नाड़ी केन्द्र की उत्तेजना से चेहरा लाल हो जाता है।
5. नाड़ी की गति तेज हो जाती है।
प्राथमिक उपचार-
1. नमक का घोल पिलाकर, मुंह में अंगुली डालकर उल्टी करवायें।
2. मैगसल्फ को पानी में घोलकर पिलाएं, एनिमा देकर विष बाहर निकाल दें।
3. रोगी को सोने न दें, सिर पर पानी छिड़कते रहें और थपथपाते रहें। अगर रोगी को नींद आ रही हो तो उसे कतई सोने न दें। गर्म चाय थोड़ी-थोड़ी देर पर देते रहें।
4. अगर रोगी को श्वास कृच्छ हो रहा हो तो उसे कृत्रिम श्वास या ऑक्सीजन देना चाहिये।
5. मूत्रावरोधक होने पर कृत्रिम उपायों से या कैथेटर लगाकर पेशाब करवाएं।
6. हींग को पानी में घोलकर पिलाने से अफीम का नशा तत्काल उतर जाता है।
7. रीठे का पानी पिलाने से भी अफीम का नशा तत्काल उतर जाता है।
8. पोटेशियम परमैंगनेट के हल्के घोल से आमाशय का प्रक्षालन करना चाहिये। इससे अफीम ऑक्सीकृत होकर अहानिकर हो जाती है।
कुचला-
यह भी एक घातक विष है। इसका स्वाद बहुत कड़वा होता है। इसे मात्र 1 ग्राम खा लेने पर 10 से 15 मिनट में इसके विष के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं एवं चिकित्सा न होने पर एक से पांच घंटों में विष जीवन लीला समाप्त कर देता है।
लक्षण-
1. मुंह का स्वाद कड़ुवा हो जाता है।
2. सुष्मना नाड़ी प्रभावित होने पर माँस-पेशियों में ऐंठन तथा आक्षेप होने लगते हैं।
3. शीघ्र ही दौरा पड़ना शुरू हो जाता है। रंग नीला पड़ जाता है। आँखें धंस जाती हैं, पुतलियां फैल जाती हैं।
- मुंह लाल झाग से भर जाता है। शरीर कभी-कभी आगे या दांये-बांये ओर मुड़ जाता है।
5. हाथ पैर कड़े पड़ जाने से मुड़ नहीं पाते। शरीर पसीने से तर होकर ठंड़ा पड़ने लगता है।
6. नाड़ी की गति धीमी हो जाती है।
7. प्यास अधिक लगती है, दौरे के भय से रोगी पानी नहीं पीता है। अन्त में दम घुटकर या हार्ट अटैक से मृत्यु हो जाती है।
प्राथमिक उपचार-
1. पोटेशियम परमैंगनेट पानी में घोलकर जितना हो सके तुरंत पिलायें।
2. नमक का घोल अधिक मात्रा में पिलाकर वमन कराकर पेट साफ करें। वमन न होने पर ट्यूब से पानी पेट के अन्दर डालकर आमाशय धोने की शीघ्र व्यवस्था करें।
3. आक्षेप को रोकने के लिये क्लोरोफॉर्म सुंघाना चाहिये।
4. श्वास रुकने लगे तो कृत्रिम विधि से श्वसन करायें। यथा संभव प्राथमिक उपचार करके रोगी को तुरन्त चिकित्सालय में भर्ती करवायें।