हे मनिखी! त्वे से भला, पशू-पराणी।
आतंकवाद उग्रवाद, तौन नि जाणी।।
पशु-पराणी त्वे अपणू, दूध पिलांदीं,
तौंकु माँस काटि-काटि, तू कनु खांदी।
फिर भि तौन त्वे दगड़ी, दुश्मनी नि ठाणी,
आतंकवाद, उग्रवाद, तौन नि जाणी।।
त्वे मनिख से गधा भलू, बात तु सूणऽ,
कथगऽ धरदि भारु तैमऽ, तिन कभि गूणऽ।
तब भि त्यारऽ दगड़ि, प्यार त्यारहि बाणी,
आतंकवाद, उग्रवाद, तैन नि जाणी।।
अपणि मरियादा परैं, पशू रंदीना,
घास खाण वळा, माँस कभि नि खंदीना।
रगी-ठगी, लूट-पाट, मन म नि ठाणी,
आतंकवाद, उग्रवाद, तौन नि जाणी।।
तेरि माटि से भली च, गुरौ कि माटी,
बिना छिड़्यां तैन कभी, कैतैं नि काटी।
बिना बात मा दुश्मनी, तैन नि ठाणी,
आतंकवाद, उग्रवाद, तैन नि जाणी।।
सच बुन ता त्वे से मनिख, शेर भलू चा,
जब लगदऽ भूख, तभी खाणु खुज्यांदा।
महाबली ह्वेकि कभी, दुश्मनी नि ठाणी,
आतंकवाद, उग्रवाद, तैन नि जाणी।।
‘बिरजु’ की य बात जरा, मनऽ म गूणऽ,
किलै कैदि बिना बात, अपणौ कि खूनऽ।
आँद अन्तकाळ छुचा, किलै नि जाणी,
क्योकु कैदि बुरा कामऽ, मनिख पराणी।।