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Friday, March 31, 2023
कविता और ग़ज़ल ग़ज़ल अफ़सोस ज़िन्दगी के सहारे नहीं रहे - ग़ज़ल

अफ़सोस ज़िन्दगी के सहारे नहीं रहे – ग़ज़ल

अफ़सोस ज़िन्दगी के सहारे नहीं रहे।

कल तक थे जो हमारे, हमारे नहीं रहे।

कैसे कहेंगे अपना उन्हें पहले की तरह।

उनकी नज़र में अब वो इशारे नहीं रहे।

तुम ही बताओ बचके भला जाते हम कहां।

तूफ़ान इस कद़र था किनारे नहीं रहे।

गिनते ही गिनते उनको गुज़र जाती ग़म की रात।

पर क्या करें फ़लक1 पे सितारे नहीं रहे।

यूं तो बहारें आयी हैं लेकिन तेरे बगै़र।

इतने हसीन अब ये नज़ारे नहीं रहे।

मिलती न जो खुशी तो कोई बात नहीं थी।

अफ़सोस ये है ग़म भी हमारे नहीं रहे।

‘आलम’ बनालो और कहीं अपना नशेमन2।

अब ये चमन ये फूल तुम्हारे नहीं रहे।

  1. फ़लक = आकाश
  2. नशेमन = आशियाना, घरौंदा

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