बचाओ लाख दिल को, पर मौहब्बत हो ही जाती है।
नज़र आखिर नज़र है यह शरारत हो ही जाती है।।
सफ़र इस ज़िन्दगी का तय अकेले हो नहीं सकता।
कोई अपना भी साथी हो यह चाहत हो ही जाती है।।
नहीं कुछ होश अपना ढूंढते हैं हर तरफ़ उनको।
दिवाने हैं, दिवानों की यह हालत हो ही जाती है।।
करें अब उनसे क्या शिकवा भला अपनी तबाही का।।
दिलों को तोड़ देना जिनकी आदत हो ही जाती है।।
अगर वो साथ हों अपने तो गुलशन हो या वीराना।
जगह कोई भी हो वो मिस्ले-जन्नत हो ही जाती है।।
छुपाया जा नहीं सकता मौहब्बत के फ़साने को।
ज़माने भर को ज़ाहिर यह हकीक़त हो ही जाती है।।
यह आदत ही नहीं यूं तो किसी से कुछ कहे ‘आलम’।
मगर जब टूटता है दिल, शिकायत हो ही जाती है।।