महकी हुई हवाओं की मानिन्द आ गए।
चुपके से आए, आके ख्यालों पे छा गए।।
हलचल सी एक होने लगी है वजूद में।
सोई हुई ख्वाहिश फिर से जगा गए।।
नज़रें उठा-उठा के झुकाना वो बार-बार।
मत पूछिए वो क्या-क्या सितम हम पे ढा गए।।
लगने लगी है अब तो हमें जिन्दगी हसीन।
लगता है हम को जीने के अंदाज आ गए।।
शायद, इसी को प्यार कहा करती है दुनिया।
वो देखते ही देखते दिल में समा गए।।
नादानी थी वो मेरी या मौसम का तक़ाज़ा।
बैठे-बिठाए दिल जो किसी पे लुटा गए।।
लगता था आग दोनों तरफ़ है लगी हुई।
अफ़सोस हम न कह सके वो भी छुपा गए।
‘आलम’ न भूल पाएंगे अंदाज़-ए-यार हम।
जब जाते-जाते हौले से वो मुस्करा गए।।