मानव जन्म हीरे-सा अनमोल है, जिसे स्वार्थी व्यक्ति भौतिक प्रगति की सीढ़ियां चढ़ने में व्यर्थ गंवाता है। इसे तराश कर चमकाने का काम गुरु ही कर सकता है। ऐसे ही नहीं संत कबीर गुरु को तभी तो गोविन्द से बड़ा बता गये हैं।
ईश्वर की कृपा से आज हमारे भारत में गुरु इफरात में मिलते हैं। किसी के चाहने भर से अनेक आदरणीय सामने आ खड़े होंगे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि आप सच्चे हृदय से किसी गुरु की शरण में जाते हैं तो वह आपको इस असार-संसार से तार कर ही दम लेगा। आपके ज्ञान चक्षु ऐसे खुलेंगे कि हर माया मोहन (घरबार) से दूर जा कर आप गुरु के माया मोह से बंध जायेंगे।
गुरु अपनी अमूल्य दीक्षा के बदले आपसे कुछ नहीं बस आपका थोड़ा सा ध्यान व पूर्ण समर्पण (तन-मन-धन जो आपके पास जितना है) इस निर्लिप्त भाव से चाहते हैं जैसे वह आपका था ही नहीं। अब तक जो था वह बोझ था, जिसे उतार कर अब आप फूल से हल्के-फुल्के हैं।
मूढ़ और महापापी हैं वे, जो अकारण गुरुओं पर कटाक्ष करते हैं। उनके मुखारबिन्दों से निकले वाक्यों के वास्तविक मर्म न समझ कर उन्हें विवादों में घसीटते हैं और तोड़-मरोड़ कर तथ्यों को प्रस्तुत करते हुये अर्थ का अनर्थ बना देते हैं।
दिल्ली गैंगरेप दुर्घटना पर हमारे संतों गुरुओं की प्रतिक्रियाओं का सीधा संकेत यही है कि यह जो भारत है (न कि इण्डिया) यह पूरा का पूरा उनकी शरण में आकर उनसे दीक्षा ले ले तो समाज में न अपराध रहेगा न अपराधी।
जरा सोचिये ऐसी सद्भावना रखने वाले गुरुओं को हाथ जोड़ नमन कर उनकी शरण में चले जाना क्या हमारे हित में नहीं है। तो चलिये हम-आप सारे काम धन्धे छोड़कर इनकी छत्रछाया में बैठ जायें और सारे संसार की ओर से आंखे बंद कर ध्यान में डूब जायें।