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Monday, June 5, 2023
कहानियां गढ़वाली कहानियां सुंदरा बौ - गढ़वाली कहानी

सुंदरा बौ – गढ़वाली कहानी

जथौ नाम तथौ गुण की या सौगात, भगवान कै बिरल तैं ही दींद, निथर जादातर मनिख्यूं क नाम अर गुणों म विरोधाभाष ही मिलद। धनिराम, पैंसा-पैंसा कु तरसद अर शूरवीर सिंह, मूसु देखि कंपद।

मेर गौं कि, ‘सुंदरा बौ’ वूं भाग्यशाली जनन्यूं म छै जौंतैं ईश्वर की या सौगात दियीं छै याने नाम अर गुंणौ म क्वी विरोध नि छौ। नाम बि ‘सुंदरा’ अर गुण बि सुंदर ही छा। मितैं खूब याद च कि मी बी.ए. कि परीक्षा दे कि घर अयूं छौ। भोजन कि थाळि मेर समणि धरद माँ न बोलि, ‘तू बि सुंदर ही समैं पर घौर ऐ, परस्यूं सुरेन्द्र कि बरातिन जौंण। वू पुछंणू बि छौ कि भुला कब च घौर औणू?’

ये शुभ समाचार सूंणिकि मितै भौत खुशी ह्वे, मेरु मन बांसौं उछिळि गी। या अवस्था ही कुछ हूंद जू इनुं मौकौं कि बेसबरि से इंतजार करणी रौंद।

सुरेन्द्र दादा, गंगा बोडा कू सबसे कंणसु अर तिसुर नौनु छौ। कुछ ही दिन पैलि वू ‘गढ़वाल रैफल’ म भर्ति ह्वे छौ। सबसे बड़ू भाई, राजेन्द्र, गौंम ही खेति-पाति कु काम करदु छौ। महेन्द्र ठेकेदारू कु मुंशि छौ।

गंगा बोड़ा कि कहानि भी भारि दुखभरी छै। घनि बाबु कू इकलौतु नौनु हूंण पर बी, वूंक भाग्य तैं बाबु कु धन रास नि ऐ। द्वी ब्यौ करण पर बी कैन वूंकु साथ नि दे। वूंतैं इखुलि छोड़ि दुन्या से ही विदा ह्वेगी।

अपुंणु इखुलु जीवन से दुखी बोड़ा, अपंण परायुं क बुलण से तिसुर ब्यौ करण कू मजबूर छौ। नजदीक गौं कू कृपाराम न जु गंगा बोड़ा तै खूब जंणदु-पछणदु छौ, अपंणि बेटि कुंवरि कू हाथ बोडा तैं थमै दे छौ। बोडा क घरम खौंण-पींण अर पहरण कि क्वी कमि नि छै। बेटि क सुखि जीवन का वास्ता और क्या चैंद? कुंवरि, बोड़ा कि तिसरि ब्योलि क रूप मा बोड़ा का घर ऐगी। राजेन्द्र, महेन्द्र अर सुरेन्द्र वी कुंवरि बोड़ि की ही औलाद छै। ये सुरेन्द्र दा क ब्यौ कि ही माँ न सूचना दे छै।

फौज कि सरकारि नौकरी का कारण, सुरेन्द्र दा कू ब्यौ घूम-घाम से ह्वेगी। ‘सुंदरा’ नाम कि नौनी सुरेन्द्र दाकि ब्योलि बंणि कि वेका घर ऐगी।

‘सुंदरा बौ’ न अपंण नाम कू मान रखी की जरा-जरा कै अपंण सुंदर आचार-विचारून गौंवलु कू दिल जीत दे। हर क्वी वूं की तारीफ ही करदु छौ। मिं इनुं दिखण चौंणू छौ कि ‘सुंदरा बौ’ म इनु क्या खूबि च जू सरि गौंक लोग वूंकि तारीफ करद थकद नि छीं।

एक दिन भगवान न मेरी सूणि ही दे। गर्म्यूं क दिन छा, गौं क हम सब नौन, धार क पांणि म नहेंण कु जयां छा। धार कू पांणि गौं का एक किनर पर सुनसान जगा पर छौ। वख नहेंण-घुयेंण की बड़ि सुविधा छै, हम सब नहेण कि सुचणै ही छा कि ‘सुंदरा बौ’ धूंणक कपड़ौ ल्हेकि वख ऐगी। हम पर नजर पड़द ही वू झिझिकि सी गी अर कुछ दूर ही बैठिगी।

मेरा हाथ बात करण कू मौका लगिगे। मिन बोलि, ‘बौजी, तुम अपंणु काम करि ल्या, तुम कुंणि देर ह्वे जौंण हम फिर फुरसत से नहें ल्यूला।’

बिना कुछ बुल्या ही वू अपंण काम पर लगिगी। अगनै बात बढ़ौंद मिन फिर बोलि, ‘सुरेन्द्र दा कि राजि खुशी त औंणी ही होली, भौत दूर चलिगे बिचरु।’ बौ कि दळिम क फूल सि उठण्यूं म जरा सि मुस्कान झलकिगी छै। वूंन मुंड ह्लै कि ‘हां’ कि पुष्टि कैदे। मेर मन की त मन म ही रैगी छै। मित वूं क शब्दु कि मिठास ल्हीण चौंणू छौ।

मोर्चा समांलद मिन एक शब्द बांण छोड़द बोलि, ‘दादा क बगैर त तुमरु मन बि क्या होलु लगणू है- बौजी’।

अपंणि उंठण्यूं दबौंद बूंन बोलि, ‘तुमरू ये प्रश्न कू उत्तर तुमतैं तब खुद ही मिल जौलू, जब तुम हमरि उमर म ऐ जैल्या। ‘वूंक ये उत्तर से मि दंग रैग्यूं। अब मेरु विश्वास पक्कु ह्वेगी कि ‘सुंदरा बौ’ क प्रति गौवलु की सोच सही च।

गंगा बोड़ा कू अब तक कू जीवन त दुख क अंध्यर म बीति छौ पंणि अब सुंदरा बौक औंण पर सुख कि एक किरण झलकदि दिखेंणी छै।

ग्राम प्रधान कु चुनाव औंण वलू छौ। गौं म मर्दू की संख्या भैर जौंण से कम ह्वेगी छै। अब या सीट जननू कू सुरक्षित छै। गौं वलु कु सुंदरा बौ तैं प्रधान पद पर बिठौंणू तय कर्यूं छौ। निश्चित तिथि पर सुंदरा बौ ग्राम प्रधानी बंणिगी। मिंडिल पास हूंण से वूतैं बी क्वी परेशानी नि छै।

ग्राम प्रधान क चुनाव क कुछ ही दिन बाद गौं म एक दर्दनाक घटना घटिगी। गौं कू ज्वान-जवान मनसा की सड़क दुर्घटना म मृत्यु ह्वेगी। वू दिल्ली की एक प्राईवेट कम्पनी म अबि लगि छौ। मनसा क परिवार क दगड़ सरि गौं म शोक छौ पसर्यूं। मनसा कि घरवळि पुष्पा, ज्वा कुछ ही मैना पैलि ब्योलि बंणिक ऐ छै, मात्र उन्नीस साल की छै। पुष्पा क दुख कू वर्णन करण की सामर्थ मेरि कलम म नि छौ।

सुंदर बौ, यी घटना से भौत दुखि छै। वूंन पुष्पा क दुख तै एक अभागी नारी कू सि दुख समझी जो वींक आस-पास ही रिटणू रै। सबसे बडू दुख यु छौ कि पुष्पा क मैत अर ससुरास, द्वी घरू की आर्थिक हालत अच्छि नि छै सुंदरा बौ, पुष्पा से मीलि की वींक विचार सुंणन कु मौका छै खुजौंणी।

एक दिन सुंदरा बौ कि मनोकामना पूरी ह्वे ही गी। वा पद्यंर छै जईं, तबि पुष्पा बी पौंछिगी। द्वियुक सिवाय वख क्वी तिसुरु नि छौ। बात ही बातुं म सुंदरा बौ न पुष्पा पूछि दे, ‘भुली, तीन अपण ये नीरस अर बोझ सि जीवन क बारा म क्या तय कैर?

पुष्पा न अपण रूख मुख पर झुकी, उल्झि लटुल्यूं हटोंद बोलि, ‘दीदी, तुमरु ये सवाल कु जवाब, मि जनि अभागि नि दे सकदू अर मितै यां कु अधिकार बि नीच। तुम ही सोच कि अच्छु खौंणु पैरुंणु कु नि चौंद’ पुष्पा क यूं शब्दू म वीं कि मन कि व्यथा छै छलकिंणी।

सुंदरा बौ न, पुष्पा क समांणि जैकि बोलि, भुली! ये बरि यख हम द्वीयूंक सिवाय तिसुर नी। तु निसंकोच मितैं बतै दे, तेर सासु ससुर, माँ-बाप अर गौं कि सरि भयात तुतैं अपुंणु नयु घर बसौंण की इजाजत दे दियन त तु राजि छै?’

कुछ देर चुप रौंण क बाद पुष्पा न बोलि, ‘दीदी मि पैलि ही बोलिग्यूं कि अच्छु खौंणु-पैरुणु कु नि चौंद पंणि भाग म बि ह्वा जब?’

कुछ देर पुष्पा क कंदुड़ु म खुशफुसाट करण क बाद सुंदरौ बौ न बिदा हूंद,

पुष्पा तैं सचेत करद बोलि, ‘भुली मेरि बात भूलि न ह्वां। काम पूरु हूंण पर मितै जरूर बतै दे। इनु बोलि द्वी अपंण घर का बाट लगिगी।

सुंदरा बौ कि अपणि योजनानुसार आज ग्राम सभा की मासिक बैठक छै। पंचुक अलावा गांव क सबि दान सयण सभा म बैठ्यां छा। कई प्रस्तावू पर विचार विमर्श ह्वेन। एक पंच की हैसियत से, शारदा देवी ने विधवा पुष्पा से संबंधित प्रस्ताव रखि दे। प्रधानी न प्रस्ताव कू समर्थन करद, सभा म बैठ्यां सबि सदस्यों अर बुजुर्गों से निवेदन करद बोलि, ‘मितैं शारदा देवी द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव मंजूर च। यु एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव च। मेरि सबि लोगु से या विनती च कि आप लोग अपणी राय जरूर दियन।’

ग्राम प्रधानी क आदेश सुंणद ही, गौं कु छगटराम खड़ु ह्वे अर ऊँची आवाज म वेन बोलि, ‘प्रधानी जी, मिं ये प्रस्ताव कु विरोध करदू। हमर हिन्दू धरम म जननु तैं दुसुरु ब्यौं करण कू क्वी अधिकार नी च। ये प्रस्ताव तैं धर्म विरोधी मानिकी वापस लिये जाव।’

सुंदरा बौ अपंण स्थान पर खड़ि ह्वे अर वंून बोलि, ‘जिठाजी, अबि आपन बोलि कि हमर धरम म जननू तैं दुसुरु ब्यौ कु अधिकार नीच। आप सभा तै इनुं बतौंण कि वी कृपा कर्यां कि मर्दूं तैं यु अधिकार कैकु अर कखम च दियूं। कखि यु विचार कै स्वार्थी मर्द कू ही त नीच। यी पुरणि सोच क कारण आज कु महिला समाज दुख च भोगणू। आप मितै बताव कि भुलि पुष्पा अबि उन्नीस साल की ही च। वींक मैत अर सासुर द्वी घरू की आर्थिक हालत बी अच्छि नी च। बींन अपंुणु यू पहाड़ सि नीरस जीवन कनि कै अर कैक सार कटण?

प्रधानी जी क यू सार पूर्ण बचनूं सूंणिक छगटराम न हैंणि सैकु न कंणै सैकु अर गूंग बंणी बैठिगी।

प्रधानी जी कू दुसुरु सवाल छौ आशाराम याने पुष्पा क ससुर जी से, ‘ससुर जी अपंणि बेटी समान ब्वारि क बारा म आपकी क्या राय च। आप वीं तै भूखन मरद दिखण चंदौ या वीं कि खुशि म खुश छा।’

आशाराम लाठि क सारु खड़ु ह्वे फिर वेन बोलि ‘प्रधानि ब्वारि, मि अनपढ़ क्या बोलु। मि एक सुख्यूं सड़्यू डालु सि खड़ु छौ, कैबरि बी भुयां लटके सकदु, पंचु अर भयात कि राय ही मेरि राय च। ‘इनु बोलि वु बैठिगी। वूंक आंखु म आंसु छा छलकणै।

इनैं ग्राम सभा की कार्यवाई चलणी छै उनै सुंदरा बौ की नजर कैक बाटु पर लगी छै। वू बार-बार इनैं-उनै नजर डलणी छै। समंणि पर पुष्पा अर वीं कु बाबु जगतराम तै औंद देखि कि वूंन चैन कि सांस ल्हे। जगतराम लाठिक बल चलणै छा। पुष्पा क घर कू बाटु पंचायति चौक से ही जौंद छौ। वू कू चौक म औंद ही, सुंदरा बौ न सेवा सौलि करद बोलि, ‘चचा जी, तुम बि भलु ही समै पर आव ‘वूंन पुष्पा क ससुर आशाराम अर जगतराम की भेंट करौंद बोलि, ‘द्वी समधि एक दुसर कि सूंणि ल्या।

आशा राम न अपंण समधि तैं ग्राम सभा की बैठक की पूरी जानकारि दींण क बाद वूं कि राय ल्हीण की कोशिश करद बोलि, ‘समधि जी, तुमरू ये विषय म क्या विचार च मि सुंणन चौंदं।’ जगतराम न बोलि, ‘समधि जी मेरि बेटि पुष्पा अब तुमरि अमानत च तुमरि राय ही मेरि राय च। ‘ग्राम सभा सदस्यों क समणी यु छौ जगतराम कू निर्णय। सुंदरा बौ कि योजना सफल ह्वेगी, अर पुष्पा कू हाथ, आशाराम, गौ कि भयात अर जगतराम की मौजूदगी म कमलानंद क हाथ मा थमै दे।

कमलानंद बचपन म ही छुरे गे छौ। वेक माँ-बाप वेक मैं-मुमौं म सौंपि की दुन्या से विदा ह्वे गै छा। आज कमला बेसिक स्कूल क अध्यापक च। सुंदरा बौ कि या सरि योजना वे दिन पद्यंर मा ही बणि गै छै।

श्री जगदीश देवरानी, नजीबाबाद
सन् 1955 से हिन्दी एवं गढ़वाली में लेखन कार्य

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