18.2 C
Dehradun
Friday, March 31, 2023
कहानियां हिंदी कहानियां बारात - हिन्दी कहानी

बारात – हिन्दी कहानी

बारात पहाड़ी ऊबड़-खाबड़ रास्तों से बढ़ती हुई आगे बढ़ रही थी। गब्दू साहूकार अपने लड़के भीकम की बारात के लिए पैंतीस चालीस आदमी ही जुटा पाया था। निहायत ही कमीना, फरेबी दगाबाज गब्दू साहूकार की कुख्याति दूर-दूर तक थी, लड़का बाप के पदचिन्ह्नों पर आगे बढ़ रहा था। उसको भला अपनी लड़की किस अभागे ने दी होगी। बारात को देखते हुए लोग जरूर सोचते रहे होंगे…परन्तु लोगों के सोचने से क्या होता है। गब्दू ने अपने निकम्मे लड़के भीकम के लिए दूर पहाड़ी पार गांव पाटली से बहू ढूंढ ही ली थी…पाटली निवासी दाताराम को उसने फांस ही लिया।

पाटली वासी दाताराम के भाग्य तो उस दिन ही फूट गये थे जिस कुघड़ी में वह खोला गांव के इस नीच गब्दू के पास सूद पर कर्जा लेने पहुंचा। जिसको लाख प्रयत्न करने पर भी वह मूल तो क्या ब्याज की एक किस्त भी न चुका पाया। ऋण का आकार विशाल अजगर का रूप धारण कर चुका था ब्याज पर ब्याज विशालोत्तर होता जा रहा था। घर मकान खेत की कुर्की से भी ऊपर का पहुंच चुका था सो जब गब्दू भीकम के लिए अपनी तरफ से निराश हो गया तो उसने अपना एकदम सटीक निशाना अपने ही पहले से किये गये शिकार पर ही किया। वह एक दिन अचानक पाटली पहुंचा और उसने स्पष्ट शब्दोें में दाताराम से कहा ‘दाताराम तुम मेरा सूद तो अब सात जन्मों में भी नहीं चुका सकते- तुम्हारे मकान खेतों की नीलामी से भी मुझे क्या मिलेगा? परन्तु अपने मकान खेतों के तुम चाहो तो आसानी से बचा सकते हो…मुझे तुम पर दया आ रही है। मैं तुम्हें इस तरह से बरबाद होता नहीं देख सकता मैं तुम पर दया कर रहा हूं…तुम मेरे समधी बन जाओ…मेरा लड़का है…सारा उसी का है…तुम्हारी बेटी राज करेगी राज…तुम्हारा कर्जा भी मैंने माफ किया…बोलो कब आऊं बारात लेकर.’

दाताराम सन्न् रह गया बेचारा क्या जवाब देता…उसने एक दो दिन की सोचने की मुहल्लत मांगी।

गब्दू ने यह सोचकर कि ‘बचकर जायेगा कहां’ उसे दो दिन में जवाब देने के लिए कहा।

दाताराम ने अपनी सारी विपदा मजबूरी गांव के भाई बंधुओं की चैपाल में रखी…पाटली गांव के नवयुवकों को यह बहुत नागवार गुजरा…कि कोई बाहर का इस तरह से गांव की बेटी को ज़बरदस्ती विवाह कर ले जाय…गब्दू की कमीनियों से वे परिचित थे… उन्होंने तुरंत ही सारे गांव के बड़े बूढ़ों को चैपाल में ही बुलवा लिया…और सारे गांव के बुजुर्गों की भातहती में यह निश्चय किया गया कि दाताराम की बेटी…सारे गांव की बेटी समझी जायेगी…सारे गांव की ज़िम्मेदारी होगी उसकी शादी सुयोग्य वर से करने की…।

दाताराम की कुर्की नहीं होने दी जायेगी। साहूकार से अब सारा गांव ही निपटेगा किस तरह निपटेगा यह युवकों ने ज़िम्मेदारी संभाली…और फिर युवकों ने एक कार्यक्रम ऐसा प्रस्तुत किया कि पहले तो बड़े बूढ़े झिझके…बिगड़े परन्तु युवकों के तर्कों से पराजित होकर अन्त में उन्होंने उनसे सहमति जता ली…दाताराम को निश्चिंत कर दिया गया। उससे कहा गया कि वह गब्दू से हां कर ले फिर वह जब चाहे…जैसा चाहे…वैसी बारात लाये…वह हामी भर ले बाकी हम देख लेंगे…।

जिन लोगों का समाज में कम मान सम्मान था उन्ही लोगों की इज़्ज़त गब्दू भीकम के यहां थी वे जैसे गब्दू और भीकम थे। बाराती भी अधिकांश वैसे ही गुण स्वभाव वाले थे। चालीस आदमियों की बारात में दस बूढ़े, पन्द्रह प्रौढ, पांच चौदह पन्द्रह वर्षीय किशोर, दसेक पन्द्रह से तीस के बीच के नवयुवक जो सबसे ज्यादा चलते हुए हुल्लड़ मचाये चल रहे थे। इनके अलावा पांच पहाड़ी बाजे ढोल ढमाऊं मशकबीन सींगतुरही वाले अपने-अपने वाद्यों से, चलते हुए शोर जारी रखने का प्रयास करते हुए पाटली की ओर बढ़ते जा रहे थे। रास्ता उबड़ खाबड़ से फैलता हुआ सा समतल होता चला आ रहा था…अब…पाटली के खेत शुरू होने लगे थे…बारात खेतों के बीच रास्ते से गुजरने लगी…एक जगह खेतों का समतल मैदान सा नजर आया। खेतों में कुछेक… स्त्रियां भी दिखाई देने लगी जो बारात का आगमन जान अपने-अपने खेतों से उत्सुक हो बारात को देख रही थी…बारात में आये हुए युवक अचानक ही जोश से भर उठे वे बाजे-वालों के सामने जाकर नाचने लगे…उनसे जोर-जोर से बजाने को कहने लगे…रास्ते के थके बाजे वाले युवकों से भयभीत होकर अपना पूरा जोर वाद्यों पर दिखाने लगे…परन्तु युवक…संतुष्ट नहीं हुए उनसे वे लगातार जोर की ही अपेक्षा करते जा रहे थे…उसी जोर…शोर की चाहत में युवक रास्ते से खड़ी फसलों वाले खेतों में नाचते हुए उतर गये… बेरहमी से फसल रौंदी जाने लगी…युवकों ने फसल का जरा भी  ध्यान न रखा… उनके साथ देखा देखी कुछ प्रौढ़ बूढां़े ने भी बेहूदे अनगढ़ तरीके से नाचना शुरू कर दिया। 

शायद खेत की मालकिन थी वो बूढ़ी सी औरत…उसको अपनी फसल की हालत देखी न गयी…वह बड़ी देर से दूर खेत के दूसरे छोर से बारात देख रही थी…. फसल की दुर्दशा उससे न देखी गयी वह लपक कर बारात के पास पहुंची उसने जोर-जोर से चिल्लाकर कहा ‘रास्ते में नाचो रास्ते में ….फसल में नहीं’ बाराती उसे देख के हंसते रहे परन्तु उन्होंने नाचना बन्द नहीं किया अब उसने गालियों की बौछार छोड़ी।

अरे…निर्दयों…हरामियों नापाक बूढ़ो तुम्हें शरम लाज भी नहीं है। फसल क्यों नष्ट कर रहे हो…तुम लोग बाराती हो…या आततायी हो…सुअरो, कुत्तों, सियारों क्या क्या कह कर उसने उनको नवाजा…उसका मुंह क्रोध से लाल हो चुका था।

उसको इस मुद्रा में देखकर लगा कि उनका मजा दूना हो गया…वे झूम-झूम कर उसको और चिढ़ाने लगे।

‘मरो तुम सब, अपनी मां के खसमों लानत गिरे तुम पर…हरामियों न जा पाओ तुम…अपने घर लौटकर इस बारात से….उस बूढ़ी ने उनको मां बहन तक की गाली दे डाली उसको और चिढ़ाने के लिए। अपना और मनोरंजन की गरज से एक बाराती बोल पड़ा ’

‘ये बुढ़िया…तूने हमको गाली दे दी…शुकर कर हमारे साथ हमारे गांव का फरसू नहीं रहा…वो आज बारात में होता तो तुझको ऐसा जबाब देता…कि’

अपनी मां का खसम होगा तुम्हारे गांव का फरसू कौन है जा बुला ला उसको भी…कौन है वो फरसू…उस हरामजादे को भी देख लूं मैं…जा ला उस हरामजादे फरसू को भी…तुम फरसू हो या सरसू मैं दरांती लेकर आ रही हूं काटती हूं मैं तुम्हारे पैरों को…।

फरसू बारात में नहीं था लेकिन फरसू के लिए व उसकी सात पीढ़ियों के लिए गालियां बुढ़िया के मुुंह से झड़ने लगी…बाराती सचमुच हरामी थे…अपने मनोरंजन के लिए उन्होंने अनुपस्थिति फरसू को भी गालियां खिला डाली…वे खिसियायी बुढ़िया की गालियां हंस हंसकर सुनते रहे…वो नाचते रहे फसल बर्बाद होती रही…। फिर अचानक अपने आप ही बारात आगे बढ़ने लगी। शायद अब बुढ़िया की गालियों से उनका मनोरंजन कम होने लगा था…उन्होंने चलना शुरू किया गोधूलि की वेला में बारात पाटली जा पहुंची। पाटली खूब बड़ा गांव प्रतीत होता था खूब बड़ी भीड़ ने गांव के बाहर आकर उनका स्वागत किया। भीड़ देखकर बाराती जरा सा चैंके कि उनके स्वागतार्थ आयी भीड़ में केवल मर्द ही व बच्चे ही थे जनाना युवतियां दिखने में नहीं आयी…शायद इस गांव का ये ही रिवाज हो…खैर बारात को दाताराम के घर के पास बने जनवासा में जाकर बिठला दिया गया और फिर उन्हें बड़े प्रेम से पानी…चाय नाश्ता…खिलाया गया। यहां भी बारात की आवभगत करने वालों के अतिरिक्त उन्हें जो भी नजर आया मर्द ही मर्द नजर आये… नवयुवक बारातियों की उत्सुक खोजी निगाहें यहां युवतियों को तलाशती ही रह गयी। दूल्हे, व उसके बाप गब्दू का स्वागत सत्कार विधिवत् दाताराम के साथ गांवो के दो चार बुजुर्गों द्वारा किया गया। इसके बाद भोजन के लिए उन्हें दूसरी जगह ले जाया गया। गांव के नवयुवकों ने बड़े उत्साह प्रेम से सारे बारतियों को भोजन कराया, इसके बाद वे फिर जनबासे में आ गये।

लग्न का समय रात को था…बाकी वैवाहिक कार्यक्रम बेदी सहित सभी रात को ही सम्पन्न की जायेगी…बारातियों को बताया गया…जो सोना चाहे…जनवासे में सो जाये…जो बेदी चलना चाहे उसे जागना पड़ेगा…युवकों को जागना रूचिकर लगा…वे बेदी की प्रतीक्षा करने लगे…।

रात को लगभग एक बजे दूल्हे को लगन के लिए बेदी में बुलवाया गया…दूल्हा…दूल्हे का बाप…उसके दो चार रिश्तेदार व साथ आये…दस नौजवानों की टोली दूल्हे के साथ चल पड़ी बेदी की ओर।

दो मकानों के बीच के आंगन में बेदी बनाई गयी थी दोनों मकानों की छत से त्रिपालों द्वारा आसमान को ढक दिया गया था, बेदी के चारों ओर कुर्सियां बिछा दी गयी थी। बेदी में पूरी पूजन सामग्री के साथ दुल्हन और पुरोहित मौजूद था। दूल्हे का पुरोहित व दूल्हा बेदी के एक किनारे जा बैठे। एक किनारे की कुर्सियों पर जवान बारातियों व दूल्हे के बाप व रिश्तेदारों ने कब्ज़ा कर लिया दूसरी तरफ की कुर्सियों पर कुछेक प्रौढ़ बूढ़ी महिलायें पहले से ही कब्ज़ा किये हुए थी…नवयुवक बराती बैचेन थे…किसी भी नवयौवना के अंग तक के दर्शन नहीं हुए थे…बेदी के चारो ओर चार पेट्रोमैक्स खम्भों से लटका दिये गये थे, जो पूरे आंगन में भरसक रोशनी फेंक रहे थे।

पर देखना किसको था…शायद दुल्हन के साथ ही उसकी सहेलियाँ आयेगी ….नौजवान प्रतीक्षा में थे थोड़ी देर बाद एक छोर से महिलाओं की झुंड आता दिखायी दिया….उनमें बीच में दुल्हन धीरे-धीरे आती दिखायी दी… आश्चर्य…फिर आश्चर्य …दुल्हन को थामे चल रही थी दो प्रौढ़ महिलायें…साथ में चलने वाली सभी महिलायें शादी-शुदा लग रही थी…क्या इस गांव में युवतियां बारातियों के सामने नहीं आती…युवक ये ही सोच रहे थे कि उनकी आशा पूरी हुई…अचानक दुल्हन के पीछे…दस पन्द्रह खिलखिलाती हुई लड़कियों का झुंड प्रकट हुआ और उसने एक तरफ की कुर्सियों पर कब्ज़ा जमा लिया। 

नवयुवक बरातियों के मनमयूर नाच उठे….अब जाके उनके हृदय के तार झंकारने से लगे।

मन्त्रोचारण के साथ….व …बगल वाली कुर्सियों पर बैढ़ी प्रौढ़ महिलाओं के मांगल गीतों के साथ बेदी कार्यक्रम प्रारम्भ हुाअ…लड़कियाँ दूसरी तरफ चुपचाप बैठी रही बेदी चलती रही मांगल गीत चलते रहे, नवयुवक इंतजार करते रहे कि युवतियां दुल्हन की सखियां बीच में दुल्हन का घूंघट मुकुट ठीक करने के बहाने आयें…बोलचाल शुरू हो परन्तु नवयुवतियां एक किनारे तटस्थ ही रही…दुल्हन से बतियाने ..उसका मुकुट घंूघट ठीक करने जब भी पहुँचती कोई प्रौढ़ महिला ही पहुँचती। दुल्हन का घूंघट बहुत आगे निकला हुआ था उसका मुंह कैसा है…उसकी एक झलक भी नहीं मिल पा रही थी …कैसी दुल्हन है। वह बार बार स्वयं ही अपने घूंघट को नीचे-नीचे किये जा रही थी …खैर फेरे होने लगे थे… दुल्हन खड़ी हुई।

तन्दुरस्त है ..पीठ दुल्हन की कुछ चैड़ी सी प्रतीत हुई तो गब्दू ने सोचा-उसने तो राजाराम की बेटी की केवल एक झलक देखी थी उस दिन गोरी चिट्ठी तन्दुरस्त लगी थी ज्यादा ध्यान से वह देख भी न पाया था। शायद वह अच्छी खासी तन्दुरस्त हो मोटी हो जो भी हो…अच्छा ही है। कमजोर तो नहीं है गब्दू साहूकार ने सोचा।

फेरे सम्पन्न हुए नवयुवतियां फेरे समाप्त होते ही दुल्हन व प्रौढ़ महिलाओं के साथ चली गयी… नौजवान यह कहते हुए कि फेरों में मजा ना आया ..बेकार ही नींद खराब की जनवासे में लौट गये।

सुबह बाकायदा बारात को नाश्ता कराया गया प्रस्थान सुबह ही होना था…विदाई का समय आ गया दुल्हन को डोली में जाना था गांव के बीस पच्चीस हट्टे कट्टे जवान आ पहुंचे। गब्दू को बताया गया कि हमारे गांव के लड़के पूरे पांच मील तक अपनी बहन की डोली स्वयं ही ले जायेंगे पांचवें मील की समाप्ति के बाद से आपके आदमी हमारी बेटी …यानि आपकी बहू की डोली ले जा सकते हैं। अब वो आपकी बहू है तब आप चाहें तो डोली में ले जायें …या पैदल हमें कोई मतलब नहीं …..।

ठीक है जी ….ठीक है अजी जब आप इतनी दूर डोली ले जायेंगे तो मैं ही क्यों अपनी बहू को पैदल ले जाऊँगा हमारे साथ वो जवान है।

मेरी बहू पैदल नहीं जायेगी। बारात विदा हुई… बरातियों ने देखा घूघंट पूरी तरह से थामे मोटी लंबी सी अंगुलियां, हिचकियां लेती दुल्हन उसको एक मजबूत कद काठी का युवक गोद में उठाये डोली में बैठा गया और स्वयं आंखे सी पोछता पीछे रह गया था। चार छः नौजवानों ने ही डोली उठायी और बारात चल पड़ी।

चौथे मील की समाप्ति पर ही जंगल शुरू हो गया था- दानों तरफ घना जंगल था। लगभग एक मील तो जंगल में बारात अवाध बढ़ती रही जैसे ही पांचवां मील समाप्त हुआ पाटली के युवकों ने डोली जमीन पर उतार कर डोली में मौजूद अपनी बहिन से विदाई ली और डोली गब्बू के बारातियों ने उठा ली….और बारात आगे…व पाटली के युवक पीछे लौटने लगे। पाटली के युवक जैसे ही बारात आंखों से ओझल हुई….रास्ते में ही बैठकर किसी की प्रतीक्षा करने लगे।

बारात पाटली के युवकों को छोड़कर एक दो फर्लांग आगे बढ़ी ही होगी कि अचानक डोली में से दुल्हन धम से जमीन पर कूदी… और जब तक डोली ले जाने वाले बाराती और अन्य संभलते। उनकी समझ में कुछ आता वह भयानक तेजी से भागते हुए जंगल में अदृश्य हो गयी। बाजे बजने बन्द हो गये थे…सब खड़े ही रह गये थे तो अचानक कुछ युवकों ने उधर बढ़ना शुरू किया जिधर दुल्हन भागी थी… घने जंगल में क्या नजर आना था… वापस हो लिये।

पाटली के युवकों को ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी… उन्हें शीघ्र ही कच्छे बनियान में हाथ में घोती पेटीकोट बालों की चोटी दुपट्टा चुनरी शाल लिए भानु जंगल से आता दिखायी दिया। वे हंसने लगे… तो दुल्हन भागकर आ गयी है यह बेटा इस साड़ी पेटीकोट चुनरी दुपट्टा को तो छोड़…ये क्या पकड़ रखा है… ले तेरी पैंट कमीज हमने पहले से ही यहां रखी हुई है। शाबास…शाबास तूने बहुत शानदार ऐक्टिंग की किसी के बाप को पता नहीं लगा…चले थे साले ससुर पाटली से ब्याह कराने… सारा युवकों का समूह ठठाकर हंसता हुआ पाटली वापस होने लगा।

Get in Touch

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Posts

खतरों की आहट – हिंदी व्यंग्य

कहते हैं भीड़ में बुद्धि नहीं होती। जनता जब सड़क पर उतर कर भीड़ बन जाये तो उसकी रही सही बुद्धि भी चली जाती...

नतमस्तक – हिंदी व्यंग्य

अपनी सरकारों की चुस्त कार्यप्रणाली को देख कर एक विज्ञापन की याद आ जाती है, जिसमें बिस्किट के स्वाद में तल्लीन एक कम्पनी मालिक...

कुम्भ महापर्व 2021 हरिद्वार

कुंभ महापर्व भारत की समग्र संस्कृति एवं सभ्यता का अनुपम दृश्य है। यह मानव समुदाय का प्रवाह विशेष है। कुंभ का अभिप्राय अमृत कुंभ...

तक्र (मट्ठे) के गुण, छाछ के फायदे

निरोगता रखने वाले खाद्य-पेय पदार्थों में तक्र (मट्ठा) कितना उपयोगी है इसको सभी जानते हैं। यह स्वादिष्ट, सुपाच्य, बल, ओज को बढ़ाने वाला एवं...

महा औषधि पंचगव्य

‘धर्मार्थ काममोक्षणामारोण्यं मूलमुन्तमम्’ इस शास्त्रोक्त कथन के अनुसार धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हेतु आरोग्य सम्पन्न शरीर की आवश्यकता होती है। पंचगव्य एक ऐसा...