‘औली’ स्कीइंग प्रेमियों का नया विकासोन्मुख क्रीड़ा स्थल

बर्फ पर खेलने के शौकीन और हिमाच्छादित मनमोहक पहाड़ी ढलानों पर हिमपात का आनन्द उठाने वाले पर्यटकों के लिए गुलमर्ग तथा मनाली के बाद अब गढ़वाल क्षेत्र में हिमाच्छादित ‘औली’ भी पर्यटकों एवं शीतकालीन खेल-प्रेमियों  के आकृर्षण का केन्द्र बन गया है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से विकसित किया जाने वाला यह शीतकालीन क्रीड़ा केन्द्र औली देश के सीमावर्ती जनपद चमोली में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा ज्योर्तिमठ आदि प्रसिद्ध मठ-मंदिरों से युक्त रमणीक 6,300 फुट की ऊंचाई पर स्थित पर्यटक स्थल जोशीमठ से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर 9,500 फुट से 10,500 फुट की ऊंचाई के मध्य स्थित है। जोशीमठ ऋषिकेश से 233 किलोमीटर तथा दिल्ली से 500 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ एक रमणीक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक पर्यटक नगर है।

औली में प्रस्तावित शीतकालीन हिमक्रीड़ा स्थल एवं रज्जूमार्ग के निर्माण की घोषणा सर्वप्रथम तत्कालीन पर्वतीय विकास राज्यमंत्री नरेन्द्र सिंह भण्डारी ने अक्टूबर 1976 में पौड़ी गढ़वाल में आयोजित एक समारोह में की थी। इस परियोजना का प्रारूप सन् 1980-81 में गढ़वाल मण्डल के आयुक्त टी.एन. धर ने तैयार कराया। ‘औली परियोजना’ के लिए रज्जू मार्ग का शिलान्यास जुलाई, 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जोशीमठ में एक समारोह में किया था। केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के सहयोग से औली में बर्फानी खेल-प्रेमियों एवं पर्यटकों के लिए ‘‘फाइबर ग्लास’’ के छोटे-छोटे आवास एवं अन्य आवास स्थल बनाये गये हैं, जिनमें लगभग एक सौ लोगों के निवास की व्यवस्था है। यहां 600 मीटर की चेयर-लिफ्ट, 500 मीटर की ‘‘स्की लिफ्ट’’ तथा दो ‘‘स्नोबीटर्स’’ राज्य सरकार की सहायता से बनाये गये हैं। केन्द्र सरकार की सहायता से औली राष्ट्रीय हिमक्रीड़ा केन्द्र को रज्जू मार्ग से जोड़ दिया गया है। इस कारण जोशीमठ से औली की दूरी रज्जू मार्ग से केवल 4 किमी0 रह गई है। जोशीमठ से औली का यह रज्जूमार्ग एशिया का सबसे बड़ा रज्जू मार्ग है। इसकी ट्रॉली से एक वक्त में 25 व्यक्ति जा सकते हैं। विश्व विख्यात नन्दादेवी पर्वत की गोद में फैला औली हिमक्रीड़ा केन्द्र के ढलान की ऊंचाई साढ़े नौ हजार फुट से साढ़े दस हजार फुट के बीच है।

नन्दादेवी, कामेट, माणा-शिखर, द्रोणागिरी, नीलकंठ, हाथी-गौरी पर्वत आदि हिमाच्छादित शिखरों के मध्य स्थित इस हिमक्रीड़ा स्थल की स्थिति अन्य किसी हिमक्रीड़ा स्थल को प्राप्त होना दुर्लभ है। औली का स्लोप अथवा ढलान विश्व के सुन्दरतम् ढलानों में माना जाता है। औली में बर्फ से ढकी सुविधाप्रद ढलानें स्कीइंग के दीवानों के लिये एक प्रकार से स्वर्ग हैं। शीतकाल में बर्फ हिमपात होते ही औली में स्कीइंग प्रेमियों का जमावड़ा प्रारम्भ हो जाता है। अब औली बर्फानी खेलों का एक आदर्श स्थल बन गया है।

बताया जाता है कि शीतकालीन हिम-क्रीड़ा केन्द्र औली एशिया में अपने किस्म का एकमात्र सुन्दर-आकर्षक खेल का मैदान है। यहां पर पिछले लगभग 14-15 वर्षों से समय-समय पर बर्फानी खेलों का प्रशिक्षण भी स्थानीय व देश-विदेशों के सरकारी एवं गैर सरकारी अभ्यार्थियों को दिया जाता है। औली की सम्भावित लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि प्रतिवर्ष हजारों तीर्थयात्री उत्तराखण्ड के सुप्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ की यात्रा करते हैं। यदि इच्छुक यात्रियों एवं सैलानियों को पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जायें तो इनमें से 25 प्रतिशत यात्री औली के रमणीक पर्यटक स्थल का भ्रमण कर गढ़वाल हिमालय का दृश्यावलोकन अवश्य करना चाहेंगे। बदरीनाथ धाम का छमाही ग्रीष्मकालीन तीर्थाटन और शीतकालीन हिम-क्रीड़ा एवं अन्य साहसिक (पर्वतारोहण आदि) पर्यटन की नई गतिविधियों से इस उत्तराखण्ड क्षेत्र में बारहमासी पर्यटन की सम्भावनायें बढ़ गई हैं। अब यह क्षेत्र बारहमासी पर्यटन की अवधारणा को चरितार्थ करते हुए अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर एक प्रमुख स्थान प्राप्त कर चुका है।

सन् 1987 से यहां पर प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्तर पर ‘‘स्कीइंग महोत्सव’’ का आयोजन किया जाने लगा है। गढ़वाल मण्डल विकास निगम द्वारा आयोजित इस महोत्सव में सौ से अधिक स्कीइंग प्रतियोगी भाग लेते हैं। प्रारम्भिक वर्ष 1987 में बहुमुखी प्रतिभा की धनी स्नातकोत्तर छात्रा किरण भट्ट पहली गढ़वाली लड़की थी जिसने औली के  हिमाच्छादित ढालों पर पहली बार स्कीइंग क्रीड़ाओं में भाग लिया और उसे बेहतर प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत भी किया गया। इसी भांति वर्ष 1993 के बाद जोशीमठ की छात्रा प्रीति डिमरी ने विभिन्न स्कीइंग प्रतियोगिताओं में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया।

भारतीय संस्कृति, इतिहास व पुरातत्व के साथ-साथ साहसिक पर्यटन की नई गतिविधियों के कारण इस क्षेत्र में रोमांचकारी पर्यटन के नये द्वार खुल गये हैं। गढ़वाल के चारों ओर फैली प्राकृतिक सुन्दरता के प्रति देश-विदेश के लिए अब इन्टरनेट व टेलीविजन पर भी इसका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।

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