हिमालय की गोद में अनेक स्थानों पर अद्भुत शिवालय व मंदिर स्थित हैं। इनमें एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक ‘पंच केदार’ के अंतर्गत शिवालय है ‘रुद्रनाथ’, जहां पर एक पाषाण गुफा में शिवजी की स्वयं-भू मूर्ति स्थित है तथा गुफा को बाद में मंदिर का स्वरूप दे दिया गया है। यहां पर रुद्रमुखाकृति का श्रृंगारकर पूजा-अर्चना की जाती है तो मूर्ति सजीव हो उठती है। सम्भवतः रुद्रनाथ भारत भर में अकेला तीर्थ है जहां शिवजी के मुख्य शीश-लिंग की पूजा होती है। इस ‘चतुर्थ-केदार’ हिमानी तीर्थ रुद्रनाथ की गणना उत्तराखण्ड के महत्वपूर्ण सिद्धपीठों में की जाती है। रुद्रनाथ (12,000 फीट) एक अनुपम हिमानी तीर्थ है।
रुद्रनाथ को पितृ-तीर्थ भी कहा जाता है। यहां पर पिण्डदान का विशेष फल है। शीतकाल में रुद्रनाथ की पूजा गोपेश्वर में गोपीनाथ मंदिर में होती है। जिला चमोली के मुख्यालय गोपेश्वर से लगभग तीन किमी0 गंगोलगांव (5000 फीट) तक मोटर मार्ग तथा गंगोल गांव से रुद्रनाथ पहुंचने के लिए 18 किमी0 का चढ़ाई युक्त कष्टसाध्य पैदल मार्ग तय करना पड़ता है। प्रदेश वन विभाग ने बीच मार्ग में विश्राम हेतु कुछ अस्थायी-आवास की व्यवस्था की है। रुद्रनाथ में अब रात्रि-विश्राम हेतु धर्मशाला की व्यवस्था भी हो गई है।
रुद्रनाथ मंदिर के पास ही पांच छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें शिवलिंग स्थित हैं तथा पास ही एक छोटा मंदिर है जिसमें विभिन्न वन-देवताओं की मूर्तियां हैं।
मंदिर के पीछे हटकर वैतरणी नदी है। किंवदन्ती है कि यहीं पर शिवजी की आराधना हेतु भगवान विष्णु ने एक हजार कमल अर्पित किए और तब आशुतोष भगवान शिव ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। वैतरणी नदी के पास मणिभद्र कुण्ड है। कहते हैं कि मणिभद्र कुंड में भगवान शंकर मुक्तामणि सदृश्य लिंग धारण कर निवास करते हैं तथा कुंड के ऊपर पार्वती निवास करती हैं।
रुद्रनाथ से कुछ ऊपर चढ़कर चोटी से चारों ओर बहुत दूर तक नंदादेवी, नंदा, घंुघटी, चौखम्बा, द्रोणगिरी, त्रिशूली, नीलकंठ, बदरीनाथ आदि हिमाच्छादित उच्च पर्वत शिखर दृष्टिगोचर होते हैं। रुद्रनाथ पहुंचने के मार्ग में पंचगंगा नाम से एक छोटा नाला, छोटे झरने, बांज-बुरांस, सुरांई, मुरेन्डा, थुनेर आदि सुन्दर वृक्षों के घने जंगल मिलते हैं। अगस्त-सितम्बर में रुद्र-हिमालय की यह रमणीय घाटी फूलों से ढकी रहती है। इस फूलों की घाटी में सैकड़ों प्रजातियों की जंगली फूलों तथा अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियों का बाहुल्य रहता है। कहते हैं इस घाटी में संजीवनी बूटी भी विद्यमान है जो कि अमावस्या-पर्व की रात्रि को अपने गुण नाम का कुछ परिचय देकर ‘ज्योति दर्शन’ कराती है। आस-पास का प्राकृतिक वैभव आकर्षक एवं रमणीक प्रतीत होता है जिससे इस कष्टप्रद यात्रा को तय करने के लिए पर्याप्त बल मिलता है। रुद्रनाथ से एक पैदल मार्ग पुत्रदा माता अनुसूया देवी (7000 फीट) मंदिर को भी जाता है।